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________________ 102 क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका वह सर्वमान्य सर्वज्ञता का ही विरोध करने लगता है। यद्यपि वह सर्वज्ञ की सत्ता का सीधा विरोध नहीं कर पाता; तथापि वह सर्वज्ञता की व्याख्याएँ बदल कर निम्नानुसार तर्क प्रस्तुत करता है : (अ) सर्वज्ञ भगवान भूतकाल और वर्तमानकाल की पर्यायों को तो जानते हैं, परंतु भविष्य की पर्यायों को नहीं जानते, क्योंकि अभी भविष्य की पर्यायें उत्पन्न ही नहीं हुई है। (ब) सर्वज्ञ भगवान भविष्य को सशर्त जानते हैं अर्थात् जो पुण्य करेगा, वह स्वर्ग जाएगा तथा जो पढ़ेगा वह पास होगा। (स) निश्चय से तो भगवान अपने आत्मा को ही जानते हैं, लोकालोक को जानना तो नियमसार गाथा 159 में व्यवहार कहा गया है, अतः सर्वज्ञता भी अभूतार्थ हुई, इसलिये पर्यायों के क्रमबद्ध परिणमन का नियम भी असत्यार्थ हुआ। (द) यदि सब कुछ निश्चित है तो पुरुषार्थ करने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी। अतः सब लोग निष्क्रिय हो जायेंगे। (इ) पर्यायों को क्रमबद्ध मानने पर एकान्त नियतवाद का प्रसंग आएगा, जबकि जैन-दर्शन अनेकान्तवादी दर्शन है। (ई) जो होना है सो निश्चित है इसलिए यदि कोई किसी की हत्या करता है, चोरी, डकैती, व्यभिचार आदि पाप करता है, तो इसमें इसका क्या दोष? क्योंकि यह तो निश्चित था। अतः उसे दण्ड क्यों दिया जाए? इसप्रकार क्रमबद्धपर्याय की श्रद्धा से सब लोग स्वच्छन्दी हो जायेंगे? प्रश्न 14. केवली भगवान भविष्य की पर्यायों को भी स्पष्ट जानते हैं - इस तथ्य की पुष्टि आगम एवं युक्ति के आधार से कीजिए? उत्तर :- सर्वज्ञ द्वारा त्रिकालवर्ती पर्यायों को युगपत् प्रत्यक्ष जानने की पुष्टि निम्न आगम प्रमाणों द्वारा होती है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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