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क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 11. जिस प्रकार धुँए से अग्नि का ज्ञान होता है, क्योंकि धुएँ की अग्नि से अन्यथा-अनुपपत्ति है, अर्थात् धुआँ अग्नि के बिना नहीं होता, अतः उसे अग्नि का ज्ञापक-हेतु कहा जाता है; उसीप्रकार सर्वज्ञता की वस्तु के सुनिश्चित परिणमन से अन्यथा - अनुपपति है, अर्थात् परिणमन-व्यवस्था सुनिश्चित हुए बिना सर्वज्ञ उसे नहीं जान सकते। सर्वज्ञ के जाने हुए क्रमानुसार ही वस्तु परिणमित होती है। तभी तो यह कहा जा सकता है कि वह परिणमन अपने निश्चित समय में हुआ है, अन्यथा वह परिणमन निश्चित समय पर हुआ या आगे पीछे हुआ है - यह किस आधार पर कहा जा सकेगा?
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एक ट्रेन किसी स्टेशन पर सुबह 10 बजे आई । यदि उसके आने का सुनिश्चित समय ज्ञात न हो तो यह कैसे कहा जा सकेगा कि वह समय से पहले आई है, समय पर आई है या विलम्ब से आई है ? सर्वज्ञतारूपी दर्पण में प्रत्येक कार्य का सुनिश्चित समय झलकता है, और वह कार्य उसी समय होता है, अतः सर्वज्ञता क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि में सबसे प्रबल ज्ञापक हेतु है ।
प्रश्न 12. क्या वस्तु का परिणमन केवलज्ञान के आधीन है?
उत्तर :- प्रत्येक वस्तु का परिणमन उसकी तत्समय की योग्यतानुसार सहज होता है, अतः वह किसी के आधीन नहीं है। केवलज्ञानी भी अपनी योग्यता के कारण उस परिणमन को जानते मात्र हैं। जानने से वस्तु पराधीन नहीं हो जाती। हम सब जानते हैं कि रविवार के बाद सोमवार आएगा। तो क्या सोमवार का आना हमारे ज्ञान के आधीन हो गया? नहीं। अतः सर्वज्ञता और क्रमबद्धपर्याय में ज्ञाता - ज्ञेय सम्बन्ध मात्र है, कर्ता-कर्म सम्बन्ध नहीं है ।
प्रश्न 13. अज्ञानियों द्वारा क्रमबद्धपर्याय का विरोध क्यों और कैसे किया जाता है?
उत्तर :- अनादि काल से यह जीव अपने को पर-पदार्थों का कर्त्ता मान रहा है। वह अपनी पर्यायों को भी अपनी इच्छानुसार उत्पन्न करना चाहता है; परन्तु क्रमबद्धपर्याय की स्वीकृति में उसकी इस मान्यता पर चोट पहुँचती है, इसलिए
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