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________________ क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर अ. तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय 1 सूत्र 9 सर्वद्रव्यपयार्येषुकेवलस्य की समस्त टीकायें। ब. प्रवचनसार : गाथा 39, 47, 200 इत्यादि । स. भगवती आराधना : गाथा 2141 द. आचार्य अमितगतिकृत योगसार : अध्याय 1 छन्द 28 1 क. आप्तमीमांसा, अष्टशती, अष्टसहस्त्री, आप्त परीक्षा आदि न्याय ग्रन्थों के सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण । 103 ख. नष्ट और अनुप्तन्न पर्यायों के ज्ञान के सम्बन्ध में धवला पुस्तक 6 में समागत निम्न शंका-समाधान ध्यान देने योग्य है । "शंका - जो पदार्थ नष्ट हो चुके हैं और जो पदार्थ अभी उत्पन्न नहीं हुए हैं, उनका केवलज्ञान से ज्ञान कैसे हो सकता है ? समाधान :- नहीं; क्योंकि केवलज्ञान के सहाय निरपेक्ष होने से बाह्यपदार्थों की अपेक्षा के बिना उनके (विनष्ट और अनुत्पन्न पदार्थों के) ज्ञान की उत्पत्ति में कोई विरोध नहीं है। " प्रवचनसार में द्रव्यार्थिकनय से भूत और भविष्य की पर्यायों को भी सत् कहकर उन्हें ज्ञान का ज्ञेय बताया गया है। उक्त आगम प्रमाणों से केवली भगवान द्वारा भूत-भविष्य की पर्यायों का स्पष्ट जानना सिद्ध होता है, अतः सशर्त जानने की बात भी नहीं रहती । प्रश्न 16. केवली भगवान लोकालोक को जानते हैं, ऐसा कहना व्यवहार है - इस कथन का यथार्थ आशय स्पष्ट कीजिए ? उत्तर :- इस कथन का आशय यह नहीं है कि वे लोकालोक को जानते ही नहीं । यहाँ लोकालोक के माध्यम से केवलज्ञान का परिचय कराया जा रहा है, अतः पराश्रित निरूपण होने से व्यवहार कहा गया है। इसीप्रकार भगवान परपदार्थों को तन्मय हुए बिना अर्थात् उन्हें अपना माने बिना और उसरूप परिणमित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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