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क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन
मिथ्यादृष्टि महाव्रती और सम्यग्दृष्टि अविरती की क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का अन्तर निम्न तालिका द्वारा भली-भाँति समझा जा सकता है। प्रकरण मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी मुनि अव्रत सम्यग्दृष्टि अहमिन्द्र क्रिया महाव्रतादिरूप आचरण । इन्द्रियजनित सुख भोगते हैं।
करते हैं। परिणाम संसार से उदास हैं। विषयानुरागी हैं। अभिप्राय (1) नरकादि के प्रतिकूल-संयोगों परद्रव्यों को दुःख का कारण
को दुःख का कारण जानते हैं। नहीं मानते। (2) विषय-सुखों को नरकादि का विषयसुख को भी दुःख जान
कारण जानकर छोड़ते हैं। कर निराकुल सुख को चाहते
(3) शरीर तथा कुटुम्ब आदि को परद्रव्यों को बुरा नहीं
बुरा जानकर उनका त्याग जानते, अपने रागभाव को करते हैं।
बुरा जानते हैं (4) व्रतादि को स्वर्ग-मोक्ष का व्रतादि क्रिया को मोक्ष का कारण मानते हैं। कारण नहीं मानते। रागभाव
छूटने से उसके कारणों का
त्याग सहज हो जाता है। (5) देव-गुरु-शास्त्रादि परद्रव्यों किसी परद्रव्य को भला नहीं
को भला जानकर उन्हें जानते। स्व को स्व और पर अंगीकार करते हैं। को पर जानते हैं। पर से कुछ
भी प्रयोजन न जानकर उसके साक्षी रहते हैं।
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