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अध्याय
क्रिया, परिणाम और अभिप्राय में उत्तरोत्तर सूक्ष्मता
क्रिया, परिणाम और अभिप्राय की परिभाषा एवं स्वरूप की चर्चा के बाद यह बात विशेष ज्ञातव्य है कि ये क्रमशः एक-दूसरे की अपेक्षा अधिक
सूक्ष्म हैं।
यहाँ स्थूलता या सूक्ष्मता से आशय उनके आकार-प्रकार से नहीं, अपितु उनके प्रमेयत्व से है अर्थात् जो जितनी शीघ्रता व सरलता से पता चल जाए, वह स्थूल है और जिसे जानने में विशेष प्रयत्न करना पड़े, वह सूक्ष्म है।
क्रिया की स्थूलता :- उक्त परिभाषा के सन्दर्भ में देखा जाए तो क्रिया सर्वाधिक स्थूल है। अपनी क्रियाओं को हम स्वयं तो जानते ही हैं, दूसरे लोग भी जान लेते हैं। जगत में किसी व्यक्ति की प्रशंसा या निन्दा उसकी बाह्य- क्रियाओं के माध्यम से होती है । यही कारण है कि साधारण व्यक्ति धर्म करने के लिए सर्वप्रथम उन बाह्य-क्रियाओं को ही अपनाता है, जिनसे लोक में प्रशंसा मिलती है अथवा जिन्हें धर्म कहा जाता है।
क्रिया की गन्ध अर्थात् उसका प्रभाव बहुत तेजी से फैलता है। आज के सूचना-क्रान्ति के युग में तो हर घटना की जानकारी चन्द मिनटों में ही सारी दुनिया को हो जाती है। यदि प्रधानमन्त्री को जुखाम भी हो जाए, तो सारी दुनिया को मालूम पड़ जाता है। दुनिया के किसी भी कोने में घटित होने वाली हिंसा, लूटपाट, चोरी, बलात्कार आदि घटनाओं से अखबार भरे रहते हैं तथा टी.वी. पर 24 घन्टे आने वाले समाचारों में ये ही घटनायें गूंजती रहती हैं।
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