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अध्याय
क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का जीवन में स्थान
हमारे जीवन में इन तीनों बातों का महत्वपूर्ण स्थान है। वास्तव में इन तीनों में ही समग्र जीवन व्याप्त है। इनके अतिरिक्त जीवन में और है ही क्या? जिस प्रकार एक रंग मञ्च अर्थात् नाटक की स्टेज में अनेक पर्दे होते हैं, बाहर कोई और दृश्य दिखाया जाता है तथा पर्दे के अन्दर किसी दूसरे दृश्य की तैयारी चलती है; उसी प्रकार हमारा जीवन भी नाटक की स्टेज जैसा है, जिसमें ये क्रिया, परिणाम और अभिप्रायरूपी तीन दृश्य बनते-मिटते रहते हैं। यहाँ इन दृश्यों को ढाँकने वाले पर्दो को भी इन्हीं नामों से सम्बोधित करना उचित है, अर्थात् क्रियारूपी पर्दे पर क्रिया का दृश्य चलता रहता है तथा परिणाम और अभिप्राय के पर्दे पर परिणाम और अभिप्राय के दृश्य रहते हैं। यहाँ इन तीनों पर्यों का विशेष स्पष्टीकरण किया जा रहा है :(1) क्रियारूपी पर्दा :___ हमारे जीवन का क्रियावाला पर्दा कुछ खुला रहता है और कुछ बन्द रहता है। जिन क्रियाओं से लोक में निन्दा न हो, ऐसी खाने-पीने, धन्धेव्यापार आदि क्रियाओं को सब लोग खुलकर करते हैं। ये तो सभी के जीवन में होने वाली सामान्य क्रियायें हैं। यद्यपि विषयभोग आदि कुछ क्रियायें व्यक्तिगतरूप से सभी के द्वारा की जाती हैं, परन्तु लज्जास्पद होने से ये क्रियायें एकान्त में की जाती है; सार्वजनिकरूप में नहीं।
जो क्रियायें लोकनिन्द्य होती हैं, जिन्हें अपराध माना जाता है और जिन्हें करने पर अपयश और दण्ड का पात्र होना पड़ता है- ऐसी सप्त
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