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क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन
नहीं सुधरा है; अतः उसे मोक्षमार्ग नहीं होता; फिर पहले अभिप्राय सुधरता है - यह नियम कहाँ रहा ?
उत्तर :- द्रव्यलिंगी की क्रिया और परिणामों को सुधरा या बिगड़ा नहीं कहा गया है। मात्र इतना ही कहा गया है कि महाव्रतादिरूप आचरण तथा महामन्दकषाय होने पर भी उसके अभिप्राय में भूल रहती है। द्रव्यलिंगी की क्रिया आगमानुकूल होती है तथा उसके परिणाम भी क्रिया के अनुकूल शुभरूप होते हैं; उन्हें व्यवहार दृष्टि से सुधरा हुआ भी कहा जाता है। वास्तव में क्रिया पर परिणामों का उपचार करके उसे सुधरा या बिगड़ा कहा जाता है। परिणाम यदि राग-द्वेषरूप हों तो बिगड़े हुए हैं तथा कषायों का अभाव हो तो सुधरे कहे जायेंगे।
प्रश्न :- परिणामों को सुधरा या बिगड़ा किस आधार पर कहा जाता
उत्तर :- प्रयोजन या उद्देश्य के आधार से ही परिणाम सुधरे या बिगड़े कहे जायेंगे। यदि किसी को बह्मचर्य व्रत लेने के परिणाम हों तो
आत्महित की अपेक्षा यह परिणाम सुधरा कहा जाएगा तथा गृहस्थजीवन में प्रवेश और कुलवृद्धि करने के लिए यही परिणाम बिगड़ा हुआ कहा जाएगा। यहाँ तो मुक्ति का प्रयोजन है, अतः जो परिणाम मुक्ति के कारण हैं, वे सब सुधरे हुए ही हैं, तथा जो परिणाम बन्ध के कारण हैं, वे सब बिगड़े हुए हैं। मिथ्या अभिप्राय के साथ होने वाले शुभ परिणाम और शुभ क्रिया भी मिथ्यापने को प्राप्त होते हैं।
प्रश्न :- यदि अभिप्राय, परिणामों व क्रिया से निरपेक्ष और स्वतन्त्र है, तो अभिप्राय का स्वरूप समझने तथा अभिप्राय की विपरीतता दूर करने के लिए क्यों कहा जा रहा है ? इस पुस्तक को लिखने की आवश्यकता भी क्या है ?
उत्तर :- अभिप्राय यद्यपि परिणामों से निरपेक्ष है, तथापि परिणामों
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