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चक्षुष्मान् !
तुमने पढ़ा- अनुप्रेक्षा का मूल स्रोत है तन्मयता । तन्मय होना बहुत बड़ी कला और बहुत बड़ी साधना है । आचार्यश्री तुलसी तन्मयता के सिद्धांत का प्रायोगिक निदर्शन हैं । वे अपने जीवन में बहुत सफल हुए हैं। इतने सफल कि बहुत कम लोग हो पाते हैं । उसका कारण तुम खोजोगे उनकी प्राणशक्ति में, मनोबल में और भाग्य में । वह खोज सत्य से परे भी नहीं है, किन्तु इस खोज में तुम्हें वह सत्य नहीं मिलेगा, जो प्राणशक्ति, मनोबल और भाग्य के लिए एक वातावरण का निर्माण करता है । वह सत्य उनकी तन्मयता की खोज में ही उपलब्ध होगा । वे तन्मय होना जानते हैं । जो कल्पना करते हैं, उसके साथ अभिन्न हो जाते हैं, तन्मय बन जाते हैं । यह तन्मय - ध्यान का प्रयोग ही उनकी प्राणशक्ति को प्रकम्पन देता है, मनोबल को ऊर्जा देता है और भाग्य को असीम अंतरिक्ष देता है ।
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अनुप्रेक्षा करो। उस महापुरुष को सामने रखो । उसके जीवन के हर वातायन को खोलो। भीतर झांको । सत्य का दर्शन होगा । तन्मय अथवा तद्रूप होकर ही कोई महान् पर्याय का निर्माण कर सकता है ।
कुछ व्यक्ति जन्म लेकर योग की साधना करते हैं और कुछ व्यक्ति सिद्धयोगी होकर जन्म लेते हैं । कोई भी हो, आखिर तन्मयता - के बिना सफलता के द्वार को नहीं खोल सकता । यदि तुम सफलता
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