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चक्षुष्मान् !
तुम जानते हो-मैं आत्मा हूं। साथ-साथ यह भी जानो-मैं केवल आत्मा नहीं हूं। आत्मा और अनात्मा-पुद्गल दोनों का मिश्रण हूं। आत्मा केवल आत्मा हो तो वह पुद्गल से प्रभावित नहीं हो सकती। चेतना है इसलिए अनुभव करो-मैं आत्मा हूं और मैं प्रभावित होता हूं इसलिए अनुभव करो-मैं पुद्गल से जुड़ा हुआ हूं।
पुद्गल के चार गुण हैं—वर्ण. गंध, रस और स्पर्श । शरीर पुद्गल से बना हुआ है और मन भी पौद्गलिक है, इसलिए शरीर और मन पुद्गल से प्रभावित होते हैं।
वर्ण, गंध, रस और स्पर्श इष्ट भी होते हैं और अनिष्ट भी होते हैं । इष्ट वर्ण, गंध, रस और स्पर्श शुभ प्रभाव डालते हैं और अनिष्ट का प्रभाव अशुभ होता है।
प्राणी मात्र पर वर्ण, गंध, रस और स्पर्श का प्रभाव होता है। मनुष्य इनसे विशेष प्रभावित होता है । यह प्रभाव केवल स्थूल शरीर के स्तर पर ही नहीं होता, सूक्ष्म शरीर के स्तर पर भी होता
वर्ण प्रकाश का एक (उनचासवां) प्रकंपन है। तैजस शरीर विद्युत् का शरीर है। उसके प्रकंपन आभामंडल का निर्माण करते हैं।
भावधारा और वर्ण-दोनों में रहस्यात्मक सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध को समझने का प्रयत्न करो। जैसे-जैसे यह रहस्य प्रगट होगा, साधना के नए आयाम खुलते जाएंगे।
लाडनूं १ मई १९९२
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