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________________ अध्यात्म की वर्णमाला भीतर द्रष्टा है चैतन्य । वह अगम्य है । उसे गम्य करने के लिए चाक्षुष केन्द्र का ध्यान एक सहज-सरल प्रयोग है । साधना के क्षेत्र में बहुत बार कहा जाता है—अपने भीतर झांको । बाहर वह कौन है, जो भीतर झांके ? चैतन्य भीतर है । वह भीतर ही है तो फिर क्या झाकें ? तर्कशास्त्र में आता है - सुशिक्षित नट - बटु भी अपने कंधे पर चढ़ने के लिए पटु नहीं है'सुशिक्षितोऽपि नटबटुः स्वस्कंधमधिरोद्धुं पटुः ।' तलवार की तेज धार भी अपने आपको नहीं काट सकती'न हि सुतीक्ष्णाप्यसिधारा स्वं छेत्तुमाहितव्यापाराः ।' फिर चैतन्य अपने आपको कैसे देखेगा ? ४० यदि इन्द्रियां स्रोत नहीं होती, चैतन्य उनके माध्यम से बाहर नहीं जाता तो भीतर झांकने का प्रश्न उपस्थित नहीं होता । भीतर झांकने का अर्थ है - जो चैतन्य इन्द्रियों के मार्ग से बाहर आकर पदार्थ जगत् में उलझ गया है, उसे फिर भीतर ले जाओ । बाहर आने वाली चैतन्य की रश्मियों को उस चैतन्य के सूर्य में विलीन कर दो, जहां चैतन्य ही चैतन्य है । Jain Education International लाडनूं १ दिसम्बर, १९९१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003167
Book TitleAdhyatma ki Varnmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size2 MB
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