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चक्षुष्मान् ! .... जो कुछ भी करो, 'वह शक्ति के द्वारा किया जा रहा है', इसे स्मृति में रखो । क्रियाशील रहना चाहो और शक्ति न हो, यह क्रियाशीलता के साथ न्याय नहीं है।
. तैजस केन्द्र शक्ति का स्रोत है उसे सक्रिय बनाना आवश्यक है पर विवेक के साथ । वासना प्रबल न बने, निषेधात्मक वृत्तियों का उद्दीपन न हो और शक्ति जाग जाए-ऐसा गुर खोजना है। यह अनुभव के द्वारा भी खोजा जा सकता है और किसी अनुभवी व्यक्ति के द्वारा उपलब्ध भी किया जा सकता है।
___ खोज और उपलब्धि -दोनों के लिए श्रम करो। वह श्रम अवश्य सफलता की ओर ले जाएगा। अध्यात्म की साधना लाभदायी है, साथ-साथ उलझन भरी भी है । शायद ही कोई लाभ ऐसा होता है, जिसके साथ उलझन न हो।
तैजस केन्द्र का अधिवृक्क ग्रन्थि के साथ संबंध है। इस केन्द्र के परिपार्श्व में अनेक वृत्तियां जागती हैं। उन वृत्तियों के प्रति जागरूक रहकर तैजस केन्द्र की साधना करो। __ शक्ति वृत्तियों को पोषण न दे। उसका उपयोग ऊर्ध्ववर्ती चैतन्य केन्द्रों के जागरण में हो।
नाभि शरीर का मध्य भाग है । उसकी शक्ति नीचे की ओर प्रवाहित होती है तो वासनाएं दीप्त होती हैं । वह ऊर्ध्व भाग की ओर प्रवाहित होती है तब वासनाओं का शमन और चैतन्य का विशिष्ट
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