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अध्यात्म की वर्णमाला
का स्पर्श भी होने लगेगा।
अभ्यास के क्रम में सबसे पहले कायोत्सर्ग का चुनाव करो। कायसिद्धि के बिना मन की सिद्धि नहीं हो सकती। शरीर को स्थिर करना सीखो। पद्मासन, अर्द्ध-पद्मासन या पालथी की मुद्रा में बैठ जाओ। बाईं हथेली पर दाई हथेली रखो और उसे नाभि के पास स्थापित करो। रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी और गर्दन सीधी। आंखें अधमुंदी हुई या मुंदी हुई । श्वास मंद । इस मुद्रा में पहले पांच मिनट स्थिरता की साधना करो। बिल्कुल हिलो-डुलो मत । प्रतिमा की भांति स्थिर बने रहो । इस अवस्था में शिथिल होने का भी अभ्यास करो। दाएं पैर के अंगूठे पर ध्यान दो, पूरे भाग को देखो। शिथिलता का सुझाव दो । 'शिथिल हो रहा हूं' इसे मन ही मन तीन बार दोहराओ । फिर अनुभव करो-शिथिल हो गया है । इस प्रक्रिया को प्रत्येक अवयव पर-पैर से सिर तक दोहराओ। इस प्रकार कायोत्सर्ग की साधना से स्थिरता, शिथिलता और जागरूकता-तीनों का विकास होने लगेगा।
पाली
१ सितम्बर, ९०
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