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________________ भूमिका श्रमण परम्परा हजारों वर्षों से चली आ रही है। तीर्थंकरों द्वारा जीए गए सत्य इस परम्परा के लिए प्रकाश स्तम्भ हैं। आत्मलक्षी व्यक्ति उस प्रकाश में एक-एक कदम बढ़ता हुआ चलता है। शताब्दियां बीती, सहस्राब्दियां बीतीं। समय के प्रवाह के साथ कुछ परम्पराएं लुप्त हो गईं, कुछ को परिवर्तित कर दिया गया, कुछ विकृत हो गईं। त्रैकालिक सत्यों को अपने-अपने स्वार्थों के लिबास पहना देने, अपनी सुविधा के ढांचे में ढाल लेने की प्रक्रियाएं तेजी से चलने लगी। तब आचार्य भिक्षु ने इसके विरुद्ध क्रांति की। परिणामस्वरूप तेरापंथ का उद्भव हुआ। दो सौ पैंतीस वर्षों में तेरापंथ ने विकास की अनेक करवटें ली हैं। गणाधिपति श्री तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ ने तेरापंथ को युग की गति के साथ योजित किया है। विकास की गति तीव्र करने के लिए गणाधिपति गुरुदेव के मस्तिष्क में एक चिन्तन कौंधा, क्रियान्विति हुई, परिणामतः समणश्रेणी का उद्भव हुआ। समणश्रेणी की स्थापना के पीछे केवल प्रचार-प्रसार का उद्देश्य नहीं रहा, बल्कि साधना के क्षेत्र में विशिष्ट प्रयोग तथा आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व निर्माण के स्वप्न ने इसकी स्थापना के लिए प्रेरित किया। तेरापंथ की भूमिका पर यह एक सफल प्रयोग घटित हुआ। आज समणश्रेणी इक्कीसवीं सदी के संन्यास के रूप में जानी जा रही है। समणश्रेणी गणाधिपति श्री तुलसी की अभिनव कृति है। तेरापंथ की क्रांति की प्रयोगशाला है-समण दीक्षा। जीवन-रूपान्तरण का प्रथम चरण तथा गणाधिपति के कर्तृत्व की एक अनुपम झलक है-समणश्रेणी। यह छोटी-सी पुस्तिका, जो आपके हाथ में है, समणश्रेणी से आपको परिचित कराती है। यद्यपि अपनी सोलह वर्ष की विकास यात्रा से इस श्रेणी ने देश और विदेश में अपनी एक पहचान बनाई है, फिर भी अभी तक काफी संख्या में लोग इसके आचार-विचार, क्रिया-कलाप, कार्यक्षेत्र तथा उपयोगिता से अनभिज्ञ हैं, अल्पभिज्ञ हैं और जानने के इच्छुक हैं। यह लघु पुस्तिका इस श्रेणी के बारे में जिज्ञासु व्यक्ति को संक्षिप्त किंतु सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003166
Book TitleSaman Diksha Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanmatishree Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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