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________________ समण दीक्षा : एक परिचय ५१ चतुर्थ प्रतिक्रमण आवश्यक मत्थएण वंदामि चतुर्थ 'प्रतिक्रमण' आवश्यक की आज्ञा -इरियावहियं-सुत्तंइच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए"..का पाठ कहें। -अतिचारक्षमा धर्म के अतिचार * प्रिय-अप्रिय परिस्थिति में सहिष्णुता न रखी हो। * अनुशासन किये जाने पर असहिष्णुता का भाव आया हो। * अश्रुपात किया हो। तस्स मिच्छामि दुक्कडं। मार्दव धर्म के अतिचार * अपने से बड़ों की अवज्ञा या आशातना की हो। * छोटों के प्रति वात्सल्य भाव न रखा हो। * अपने आपको उत्कृष्ट दिखाने का प्रयत्न किया हो। * व्यवहार में कठोरता बरती हो, अपशब्दों का प्रयोग किया हो। तस्स......... आर्जव धर्म के अतिचार * कायिक, वाचिक मानसिक प्रवंचना की हो। * अपनी भूल को छिपाने का प्रयत्न किया हो। तस्स" लाघव धर्म के अतिचार * मर्यादा से अतिरिक्त उपकरणों का प्रयोग किया हो। तस्स......" अहिंसाव्रत के अतिचार * षड्जीवनिकाय के प्रति आत्मतुला का भाव न रहा हो। • हिंसा का विकल्प आया हो। * अनिष्ट चिंतन, प्रतिशोध, उत्तेजना रूप मानसिक हिंसा की हो। तस्स" १. इरियावहियं सुत्त तथा आगे का प्रतिक्रमण (दाएं घुटने को खड़ा रख कर) बैठकर करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003166
Book TitleSaman Diksha Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanmatishree Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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