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________________ ५० समण दीक्षा : एक परिचय निस्संकिय, निक्कंखिय, निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य उववूह थिरीकरणे, वच्छल्ल-पभावणे अट्ठ॥ जावज्जीवं एयं सव्वं उवसंपज्जामि अप्पसक्खियं गुरुसक्खियं । अइक्कमणं न करेमि, न कारवेमि, करंतं पि अण्णं न समणुजाणामि । तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । द्वितीय आवश्यक 'मत्थएण वंदामि' द्वितीय चउवीसत्थव आवश्यक की आज्ञा । - चउवीसत्थव-सुत्तं लोगस्स उज्जोय गरे "का पाठ कहेंतृतीय आवश्यक 'मत्थएण वंदामि' तृतीयवंदना आवश्यक की आज्ञा । - वंदणय-सुत्तं इच्छामि खमासमणो! वंदिउं, जावणिज्जाए निसीहियाए । अणुजाणह मे मिउग्गहं। निसीहि' अहोकायं काय - संफासं । खमणिज्जो भे किलामो । अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो? जत्ता भे जवणिज्जं च भे खामेमि खमासमणो! देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स खमासमणो ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । इच्छामि खमासमणो!" - Jain Education International वंदणय-सुत्तं - "का पाठ दो बार कहें । १. 'निसीहि' कहकर पंजों के बल बैठकर आगे का पाठ कहें २. आवस्सियाए के बाद खड़े हो जायें नोट- दूसरी बार 'खमासमणो' की पाटी में 'निसीहि' के बाद बैठकर ही संपूर्ण पाठ कहें। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003166
Book TitleSaman Diksha Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanmatishree Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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