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________________ समण दीक्षा : एक परिचय २१ के साथ बात नहीं करेगा/करेगी। ७. 'गण में रहूं निर्दाव एकल्लो'--आचार्य भिक्षु के इस नीति वाक्य को सामने रखकर समण/समणी सामुदायिक जीवन जीते हुए भी किसी को अपना बनाने का प्रयत्न नहीं करेगा/करेगी। ८, समण/समणी प्रतिदिन संकल्प पत्र दोहराएगा/दोहराएगी। ६. मौलिक आचार या अनुशासन का अतिक्रमण होने पर समण और समणी आचार्य या आचार्य द्वारा निर्दिष्ट व्यक्ति के पास प्रायश्चित्त करेगा/करेगी। १०. समणश्रेणी में दीक्षित होने के बाद भी कोई समण-समणी आचार और अनुशासन की दृष्टि से अयोग्य प्रमाणित हो जाए तो उसे श्रेणी से पृथक् किया जा सकेगा। ११. समण/समणी अपने-अपने वर्ग में सौहार्द और सहयोग का विकास करता रहेगा करती रहेगी। १२. समण/समणी व्यक्तिगत जीवन में अधिक से अधिक स्वावलम्बी और स्वनिर्भर रहने का अभ्यास करेगा/करेगी। गुरुदेव श्री तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा निर्मित अनुशासन की ये धाराएं किसी भी देश के संविधान से कम नहीं हैं। अनुशासन की इन्हीं धाराओं के सहारे समणश्रेणी अपने पन्द्रह वर्षों की सफल यात्रा कर सकी है। तेरापंथ में अनुशासन थोपा हुआ नहीं है बल्कि प्रत्येक सदस्य द्वारा सहज स्वीकृत है। अनुशासन समणश्रेणी के लिए सुरक्षा कवच है। बाहरी कवच बाह्य वातावरण से केवल शरीर की सुरक्षा करता है, अनुशासन शरीर और जीवन दोनों की रक्षा करता है। वह कलात्मक जीवन जीने का पथ है। गणाधिपति श्री तुलसी के शब्दों में-'अनुशासन वह कला है, जो जीवन के प्रति आस्था जगाती है। अनुशासन वह आस्था है, जो व्यवस्था देती है। अनुशासन वह व्यवस्था है, जो शक्तियों का नियोजन करती है। अनुशासन वह नियोजन है, जो नए सृजन की क्षमता विकसित करता है। अनुशासन वह सृजन है, जो आध्यात्मिक चेतना को जगाता है। अनुशासन वह चेतना है, जो अस्तित्त्व का बोध कराती है। अनुशासन वह बोध है, जो कलात्मक जीवन जीना सिखाती है।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003166
Book TitleSaman Diksha Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanmatishree Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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