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________________ समण श्रेणी के मानक गणाधिपति श्री तुलसी क्रियाशील व्यक्तित्व के धनी हैं। उनके जीवन के आदर्श हैं-गतिशीलता, उपयोगिता और पवित्रता। समण श्रेणी उनके उस त्रिकोणात्मक आदर्श का एक रचनात्मक पक्ष है। इसको इस शताब्दी के उत्तरार्द्ध की उपलब्धि कहा जा सकता है। समणश्रेणी का उद्भव, अचानक घटित घटना नहीं है और न ही यह महाव्रत दीक्षा का सरलीकरण है। यह श्रेणी आध्यात्मिक जीवन शैली का आधुनिक प्रयोग है। गणाधिपति श्री तुलसी ने अपनी सृजनधर्मिता से सामाजिक परम्पराओं का परिष्कार किया है, धर्म को नई परिभाषा दी है अध्यात्म को विज्ञान के साथ जोड़ने का साहस किया है। समण दीक्षा संन्यास का एक अभिनव उपक्रम है। नये संन्यास के लिए नये विधि-विधान, नई वेश-भूषा, नए नाम और संबोधन का निर्धारण किया गया। ये नए मानक इस श्रेणी की अलग पहचान बन गए। वेश-भूषा वेश व्यक्तित्व की प्रथम झलक है। इससे व्यक्तित्व का वैशिष्ट्य भी उजागर होता है। यह परम्परा-विशेष की पहचान भी देता है। गृहस्थ का वेश अलग होता है और साधुओं का अलग। वैदिक परम्परा में संन्यासी पीताम्बर धारण करते हैं। बौद्ध परम्परा में काषाय और जैन परम्परा में श्वेतवस्त्रों का प्रावधान है। भगवान् महावीर से चली आ रही इस परम्परा के अनुसार समण श्रेणी के परिधान का रंग श्वेत ही स्वीकृत हुआ। तेरापंथ धर्म संघ में साधु-साध्वी का वेश २५० वर्षों में विभिन्न परिष्कारों और परिवर्तनों से गुजरता हुआ सुन्दरतम रूप ले चुका है। समणश्रेणी का वेश उससे कुछ भिन्न हो, यह सोचा गया। श्रेणी-प्रवर्तन से पूर्व अनेक प्रकार से इसके बारे में चिन्तन किया गया। आखिर जिस वेश को अन्तिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003166
Book TitleSaman Diksha Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanmatishree Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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