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समण दीक्षा : एक परिचय १३
हजार आंखें इस अपूर्व दृश्य की साक्षी बनने को आतुर थीं। यथासमय कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। दीक्षार्थिनी बहिनों के क्रांतिकारी, संशयातीत और समर्पण से ओत-प्रोत विचारों को सुनकर विशाल जनमेदिनी की धड़कने मानों थम गई हों। चारों ओर गहरी शांति, नीरव, निस्तब्ध वातावरण था। ____ नये वेश में उपस्थित ये मुमुक्षु बहिनें देवकन्या-सी प्रतीत हो रही थीं। सफेद, दूध-सा उज्ज्वल वेश उनकी आन्तरिक उज्ज्वलता को मानों प्रस्फुटित कर रहा हो। विलक्षण वेश ने विलक्षणता के एक पहलू को समाहित कर दिया। यह परिधान न मुमुक्षु जैसा था, न साध्वी जैसा, न इसाई साध्वी जैसा था न नौं जैसा। सुचिन्तन पूर्वक बनाया गया यह वेश जहां शरीर का सुरक्षा कवच था, वहां सादगी और संयम का परिचायक तथा जनता के आकर्षण का केन्द्र भी बना। - इस अभूतपूर्व दृश्य की साक्षी बनी हजारों आंखें तृप्ति का अनुभव कर रही थीं। जीवन में कुछ क्षण ऐसे आते हैं जो स्मृति प्रकोष्ठों में कैद हो जाते हैं। यह महोत्सव भी कुछ ऐसा ही था। महिनों तक इसकी चर्चा यत्र-तत्र सुनी जाती रही। कुछ लोग आचार्य तुलसी के कर्तृत्व की दाद दे रहे थे तो कुछ इन दीक्षित होने वाली बहनों के साहस को सराहना कर रहे थे। कुछ तेरापंथ के शुभ भविष्य की कल्पना कर रहे थे तो कुछ इस श्रेणी को तात्त्विकता की कसौटी पर कस रहे थे। गुरुदेव तुलसी ने इस श्रेणी की कसौटी के लिए लोगों को खुला अवकाश दिया।
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