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________________ ६४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म अतिप्राचीन काल के प्रसंगों की बात तो जाने दीजिए किन्तु श्रेणिक पुत्र अभयकुमार की प्रेरणा से प्रतिबोध पाकर भगवान महावीर की शरण में आनेवाला अनार्य भूमि का राजकुमार आर्द्र कुमार कौन था, इसे जानने का भी हम लोगों ने प्रयास नहीं किया । कुछ वर्ष पहले डा० प्राणनाथ ने प्रभासपाटण के ताम्रपत्र को पढ़ने के बाद लिखा था कि बेबीलोन के राजा नेबुचन्द्रनेझार ने रेवतगिरि (गिरनार) पर नाथ नेमि के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया था। यह बात पुरातत्त्ववेत्ताओं के समक्ष आने पर भी आजतक किसी भी तत्त्ववेत्ता, संशोधक, पुरातत्त्ववेत्ता अथवा जैनधर्मानुयायी ने इस विषय के संशोधन की तरफ ध्यान नहीं दिया। ऐसा लगता है कि पार्द्र देश, आर्द्रनगर कहां हैं इसके संबन्ध में तो जैन संशोधकों ने शोध करने की जरूरत ही नहीं समझी। पश्चिम एशिया में मेसोपोटेमिया देश अति प्राचीन काल में उत्तर, मध्य और दक्षिण ऐसे तीन विभागों में विभक्त था । उत्तर विभाग अपनी राजधानी असुर नाम के कारण एसीरिया के नाम से पहचाना जाता था। मध्यविभाग की प्राचीन राजधानी कीश थी किन्तु हमरावी के समय में (ईसा पूर्व २१२३ से २०८१) बेबीलोन के विशेष विकास पर पा जाने से मध्य भाग की राजधानी बेबीलोन बनी और समय बीतने पर मध्यविभाग बेबीलोन के नाम से प्रसिद्धि पा गया। समुद्रतटवर्ती दक्षिण भाग की प्राचीन राजधानी एर्व (Erideu) बंदरगाह थी। कुछ समय बाद बेबीलोन के शक्तिशाली राजानों ने इन तीनों भागों पर अपना अधिकार जमा लिया और तीनों संयुक्त प्रदेशों की राजधानी बेबीलोन को बनाया। - जैन साहित्य में वणित पानगर ही ऐद्य नगर होने के प्रमाण मिलते हैं। प्राचीनकाल में समृद्धिशील नगरों में पार्द्र के समान एक भी नगर नहीं था। ऐद्य बन्दर की जाहोजलाली ईसा पूर्व ५००० वर्ष से प्रारम्भ होती है। जल प्रलय के पूर्व के चार बन्दरों में से ऐद्य भी एक बंदर था। समुद्र तटवर्ती युक्रटीस नदी के मुख (दहाने) पर होने के कारण इस बन्दरगाह का भारत के साथ सीधा जलमार्ग का सबंध था। . धीरे-धीरे नदी के कटाव के कारण बन्दरगाह भरने लगी और इसका महत्व घटता चला गया । आज इस नगर के खण्डहर उर से १२ मील दक्षिण-पश्चिम में फैले हुए हैं। बतरा से इराक जानेवाली रेलवे इन खंडहरों से तेरह मील पूर्व से होकर जाती है। ईसा पूर्व ६०४ में बेबीलोन की गद्दी पर जगप्रसिद्ध सम्राट नेबूचन्द्र नेझार बैठा उसके पिता नेबपोलशार ने उसे अपने विशाल राज्य का वारसा सौंपा । पर नेबुचन्द्रनेझार ने इस राज्य को चार चांद लगा दिये थे । अपने पिता की मौजूदगी में (ईसा पूर्व ६०५ में) इस ने एसीरिया को हराकर इसके सारे प्रदेश को बेबीलोन में मिला लिया था। बाद में वह दिग्विजय के लिए निकला। नेको को हराकर उसने एशिया से यूरोप और अफ्रीका की तरफ कूच किया तत्पश्चात् जिन-जिन राज्यों ने बेबीलोन राज्य को उसकी अशक्त अवस्था में क्षति पहुँचायी थी, उन सबको भी इसने जोतना शुरू किया। जुड़ा के यहूदियों ने बेबीलोन की समृद्धि को लूटा और अपनी राजघानी यूरोशलिम में अपने इष्टदेव के मन्दिर का निर्माण उस की समृद्धि से किया । नेबुचन्द्रनेझार ने अपना बदला लेने के लिए इस देश को जीतकर लूटा । पश्चात् दयाल भाव से वहां के राजा को उस का राज्य वापिस सौंप 1. The Times of India 19-3-1935 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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