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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म भाई फूलचन्द हरिचन्द दोशी महुअा (सौराष्ट्र) वालों जो इस गुरुकुल के विद्यापति थे उनके सहयोग से आपने विद्यार्थियों का जीवन उच्च और प्रादर्श बनाने के लिये पूर्णरूपेण ध्यान रखा । जिसके परिणामस्वरूप गुरुकुल एक राष्ट्रीय आदर्श संस्था के रूप में प्रकाशमान हुप्रा । श्री दोशी जी को विद्यार्थी गुरु जी के नाम से संबोधित करते थे । विद्यार्थियों की सेवा, तथा उन्हें सच्चरित्रवान बनाने के लिये आप अपने जूठे बरतन भी स्वयं मांझ लिया करते थे । बीमार बच्चों की सेवा श्रूषा स्वयं अपने हाथों से करते थे। यदि अावश्यकता होती तो रोगी बालक की टट्टी-पेशाब उठाने से भी कभी पीछे नहीं रहते थे । विद्यार्थियों के चरित्र की शुद्धि के लिये सब विद्यार्थी प्रतिदिन की दिनचर्या का विवरण अपनी डायरी में लिखकर पापको देते थे। उन्हें पढ़ कर सब पर आप आलोचनात्मक नोट लिखते थे जिसे विद्यार्थी अपनी भूलों को संशोधन करके प्रादर्श बनने का प्रयास करते थे। सब विद्यार्थी पापको बाबाजी(पितामह) के नाम से संबोधित करते थे । आप दोनों बाबा जी व गुरुजी के गरुकल को छोड़ने के बाद यह संस्था अवनति की ओर अग्रसर होते हए अन्त में समाप्त हो गई। ई० सन् १९३२ में पाप गुजरांवाला से कांग्रेस आंदोलन में जेल गये । जेल से आने पर आप वापस विनौली आ गये। विनोली आकर आपने अपना ध्यान हस्तिनापुर तीर्थ की अोर लगाया । तीर्थ की जो उन्नति हुई उसमें आपका सर्वाधिक हाथ है । पहले यहां यात्री बहुत कम आते थे क्योंकि वहाँ जाने के साधन नहीं थे फिर भी आप हर साल वहाँ जाकर रथ यात्राका प्रबन्ध करते थे। उस समय करीब १५-२० लोग यहाँ आपाते थे। निशियां जी का जीर्णोद्धार कराया, वहां जमींदारी खरीद कर मंदिर के नाम कराई, जिससे मंदिर को आमदनी होती रहे। मंदिर के जीर्णोद्धार के लिये बम्बई तथा प्रानंदजी कल्याण जी की पेंढ़ी से संपर्क इत्यादि किये तथा वहाँ से रुपया प्राप्त किया। मंदिर के नाम देहली में जमीन लेकर कमलानगर में शांति भवन का निर्माण कराकर उसके भाड़े से तीर्थ की स्थाई प्रामदनी कराई । वर्षीयतप पारणे के लिये कोई भी हस्तिनापुर नहीं पाता था आपने इस विषय में बहुत प्रचार कराया तथा पारणे के लिये गन्ने के रस का प्रबन्ध कर तपस्वियों के पारणे की सुविधा कराई । अाजादी के पहले सन् १९३८ में आप कांग्रेस के सत्याग्रह में ६ महीने जेल में रहे, वहां उत्तरप्रदेश के बड़े-बड़े नेता प्रापके संपर्क में आये। प्रापको उत्तरप्रदेश से कांग्रेस के टिकट पर विधान सभा के चुनाव के लिये बहत जोर दिया गया मगर आपने साफ कहा कि मैंने जो कुरबानी देश के लिये की है मुझे उसके बदले में कुछ नहीं चाहिये । स्वतन्त्रता संग्राम में प्राप बीच-बीच में अनेक बार जेल गये। विनोबा जी के भूदान यज्ञ में आपने सर्वोदय को अपनी २०० बीघा जमीन दान में दी। विनौली में वाचनालय आदि स्थापित कराये ! अाजादी मिलने के बाद आपको तहसील सरधना का प्रानरेरी मजिस्ट्रेट बनाया गया । उस पद पर आपने २-३ वर्ष कार्य किया मगर आपकी आत्मा ने यह भी स्वीकार नहीं किया तथा अपना त्यागपत्र मुख्य मंत्री पं० गोविन्दवल्लभ पंत को सीधा भेज दिया । आपने अपना जीवन बहुत सादा बिताया खादी के कपड़े पहनना तथा सादगी से रहना ही आपका ध्येय रहा प्रापने हमेशा सत्य तथा अहिंसा में ही विश्वास रखा। आपका स्वर्गवास विनोली में हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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