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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म इन ट्रेक्टों के वितरण से सनातनधर्मी समाज श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनों से एकदम विरोधी हो उठी। नगर का वातावरण एकदम क्षुब्ध हो उठा और उन्होंने "श्री प्रात्मानन्द जैन सभा गुजरांवाला" (मूर्तिपूजक संघ की प्रतिनिधि सभा ) के नाम से शास्त्रार्थ के हैंडबिल छाप कर चायलेज दे दिया। दोनों तरफ से विज्ञापनो द्वारा नोटिसबाजी चालू हो गई उस समय श्री आत्मानंद जैन सभा के मंत्री लाला जगन्नाथ जी नाज़र थे और सनातन धर्म सभा के मंत्री पं० केदारनाथ जी शर्मा थे। ___ सनातनधर्मियों के साथ ढूंढकमती भी शामिल थे और उनकी यही इच्छा थी कि मूर्तिपूजक जैनों को नीचा दिखलाया जावे । नगर का वातावरण श्वेतांबर जैनों की जान और माल के लिये जोखमपूर्ण बन गया था। उस समय मुनि श्री वल्लभविजय जी (पश्चात् प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी) को उनके शिष्य मुनि सोहन विजय जी के साथ खिवाई जि० मेरठ से तथा पं० वृजलाल जी वेदांताचार्य को शास्त्रार्थ के लिए गुजरांवाला में बुलाया गया। इस समय 'नाजर साहब' ने अपनी जान को हथेली पर रखकर जो जिनशासन की सेवा की, उसमें उन्होंने पूरी-पूरी जवांमर्दी बतलाई । अंत में श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनों की विजय हुई। श्री नाजर जी ने श्री जैन श्वेतांबर चितामणि पार्श्वनाथ के मंदिर गुजरांवाला का जीर्णोद्धार भी वृद्धावस्था में पूरे समय का योगदान देकर अपनी निगरानी में कराया था। पण्डित श्री अमीचन्द जी (पट्टी जिला अमृतसर ) वि० सं० १९२१ के चौमासे के पश्चात् ढूंढक वेश में रहते हुए गुप्त मंत्रणा के रूप में सत्यधर्म का प्रचार करते हुए श्री आत्माराम (श्री विजयानंद सूरीश्वर) जी के सत्यान्वेषी सहयोगी मुनि श्री विश्नचंद जी महाराज (पश्चात् श्री लक्ष्मीविजय जी) विहार करते हुए पट्टी पधारे। आपने सुश्रावक ला० घसीटामल को अनेकान्त सत्यधर्म का उपदेश दिया। आपने दुविधा में पड़े हुए घसीटामल से कहा कि अपने लड़के अमीचंद को संस्कृत व्याकरण पढ़ायो । बाद में जो वह निर्णय दे, उसे ही सत्यधर्म मानना । अमीचंद जी की प्राय उस समय सत्तरह वर्ष की थी। वे पढ़कर जब विद्वान बने तो उन्हों ने निर्णय दिया कि मूर्तिपूजा शास्त्रसम्मत है। तब लाला घसीटामल जी अन्य परिवारों सहित सत्य सनातन जैन धर्म के अनुयायी बने -अमीचंद जी-पण्डित अमीचंद जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उस समय का कोई साधु-साध्वी ऐसा नहीं था जो उनसे न पढ़ा हो। पंडित अमीचंद जी का जन्म वि० सं० १६०५ और स्वर्गगमन वि० सं० १६६० में हुआ। आज पट्टी में श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनों के एक सौ पच्चीस घर हैं । दो जैन मंदिर-एक जैनधर्म पाठशाला, दो उपाश्रय तथा श्री प्रात्मानंद जैन सभा-पट्टी-एवं श्री प्रात्मानन्द जैन युवकमण्डल भी है। स्व० बाबू कीर्तिप्रसाद जी जैन B. A, L. L. B Advocate प्रापका जन्म लाला मुसद्दीलाल प्यारेलाल विनोली (जि० मेरठ) निवासी के सम्पन्न घराने में हुमा । मापने स०ई० १६०४ में मेरठ कालिज के पहले बैच में वकालत पास की तथा मेरठ में ही 1-इस शास्त्रार्थ तथा विजयी होने के इतिहास के जानने के इच्छुक देखें-भीमज्ञाननिशिका नामक पुस्तक, तथा विशेषनिर्णय नामक पुस्तक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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