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________________ श्री सत्यपाल नौलखा ६०३ धर्मपत्नी की दीक्षा ले जाने के बाद आप ने अपना सारा जीवन जैनशासन की सेवा में लगा दिया। सात्विक भोजन, सादा सरल जीवन तथा शुद्ध पवित्र खादी के वस्त्रों का ही प्रयोग करने लगे और संसारी कार्यों से एकदम दिलचस्पी हटा ली। स्वाध्याय करना, जैनधर्म की गुजराती पुस्तकों का हिन्दी, उर्दू में अनुवाद करके प्रकाशित कसना (जिस से पंजाब में धर्म शिक्षा का प्रचार हो सके) पाप ने चालू कर दिया। नई पीढ़ी के बच्चों को धर्म शिक्षा देना, देवदर्शन-पूजन-सामायिक की विधि सिखलाना। पंजाब के नगरनगर में जाकर धर्म प्रवचन करना । अपने जीवन का मुख्योद्देश्य बना लिया । १. गुजराती "व्यावहारिक शिक्षाएं" का हिन्दी में अनुवाद, २. जैनधर्म-हिन्दी का ऊर्दू में में अनुवाद, ३. देवदर्शन और पूजन विधि हिन्दी-उर्दू, ४. कन्यासबोध, गुजराती से हिन्दी मनुवाद, ५. प्रभु के मार्ग में ज्ञान का प्रकाश-गुजराती से हिन्दी अनुवाद, ६. गृहस्थी के रोजाना फ़रायज (उर्दू में) आदि पुस्तकों को लिखकर प्रकाशित कराया; जिस से पंजाब निवासी जैनबालक धर्म शिक्षा प्राप्त कर सकें। श्री हस्तिनापुर तीर्थ की प्रापको विशेष भक्ति थी। रुपया तीन हजार तीर्थ समिति को दिया जिससे इसके व्याज से प्राप्त होने वाली धनराशी से इस तीर्थ पर कार्तिक पूर्णमाशी पर्व पर पधारने वाले यात्रियों का प्रतिवर्ष साधर्मीवात्सल्य किया जाया करे । श्री श्वेतांबर जैनमंदिर जीरा की सार-संभाल में प्राप को बहुत रुचि थी। इस प्रकार प्राप ने सारा जीवन स्वाध्याय, सत्संग, शासनसेवा, प्रभुभक्ति में लगा दिया। विचारों की पवित्रता के साथ-साथ पाप का माचरण भी आदर्श था। अन्तिम अवस्था में आप अपना अधिक समय ध्यान और जाप में व्यतीत करने लगे। ता० १४ फ़रवरी १९५१ ईस्वी को संध्या समय ६७ वर्ष की आयु में आपका जीरा में स्वर्गवास हो गया। बालब्रह्मचारी हंसराज जी नौलखा जीरा निवासी हकीम दिलसुखराय जी नौलखा के सुपुत्र श्री हंसराज का ई० स० १६०३ में जन्म हुआ । पाप ने हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस से एम० ए० परीक्षा पास की। तब से प्राप ब्रह्मचारी के रूप में त्यागमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अनेक जैन तथा राष्ट्रीय संस्थानों में क्रमशः सेवारत चले प्रारहे हैं । श्री प्रात्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब गुजरांवाला में भी पाप ने अनेक वर्ष सेवा की है। अहमदाबाद से निकलने वाली अहिंसा नामक मासिक पत्रिका के पाप संपादक हैं । श्रीमद् राजचन्द्र के गुजराती साहित्य का पाप ने हिन्दी भाषा में रूपांतर किया है । आजकल माप प्राध्यात्मिक शिवरों और योगसाधना में विशेष रुचि रखते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा की शोध में भी रुचि रखते हैं और इस विषय पर पुस्तकें भी लिखते हैं । अधिकतर पाप गुजरात प्रांत में जीवन यापन कर रहे हैं । शुद्ध खादी पहनते हैं और साधु-सन्यासी के वेश में रहते है । श्री सत्यपाल जैन नौलखा पंजाब जैन श्रीसंघ की वर्तमान सामाजिक और धार्मिक प्रवृत्तियों में पूरी निष्ठा तथा पूरे उत्साह से सक्रिय भाग लेने वाले युवा नेता श्री सत्यपाल जी का जन्म जीरा में २७-२-१६२६ का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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