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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म विशेष ज्ञातव्य - १ - प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि ( श्रात्माराम ) जी का स्वर्गवास मिति जेठ सुदि ८ वि० सं० १६५३ को गुजरावाला में हो गया । श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ पर प्राचार्यश्री के पार्थिव शरीर के दाह संस्कार के अवसर पर विरोधि पक्ष द्वारा किये अपरिहार्य उपद्रव के अवसर पर अंग्रेजी सरकार की तरफ से पुलिस केस बना दिया गया । उस समय श्वे मू० संघ का बच्चा-बच्चा डिप्टी कमिश्नर की कोठी के आगे धरना लगाकर जा बैठा । श्रौर केस की पैरवी के लिये डट गया । ० ५६४ उस अवसर पर बड़ी निर्भयता से लाला मानकचन्दजी ने वहाँ खड़े होकर बुलंद आवाज से घोषणा की कि अंग्रेज सरकार गुजरांवाला श्रीसंघ को एक इकाई न समझे । इसके साथ सारे विश्व का जैन समाज है । इस मुकदमे की पैरवी में जैन समाज का बच्चा-बच्चा बलिदान हो जायेगा पर इस धर्मसंकट को मिटाकर ही जीवित रहेगा। अंत में गुजरांवाला श्रीसंघ की विजय हुई और विरोधी पक्ष को मुँह की खानी पड़ी। डिप्टी कमिश्नर को श्रीसंघ से क्षमा माँगनी पड़ी । २ - गुजरांवाला में छोटी रेलवे लाईन थी । पश्चात् बड़ी रेलवे लाईन का निर्माण होने पर रेलवे डिपार्टमेंट ने छोटी लाइन उखड़वाने के टेंडर मांगे । लालाजी ने सबसे कम मूल्य का टेंडर दिया जिससे इनका टेंडर मंजूर कर लिया गया । सबका यह अनुमान था कि इस धन्धे में लाला जी घाटे में रहेंगे । लगभग एक सौ मजदूर इस कार्य में संलग्न थे । लालाजी ने सब मजदूरों को इकट्ठा करके कहा कि जो मजदूर सबसे अधिक काम करेगा उसे आठ आने इनाम में प्रतिदिन दिये जाया करेंगे । बस फिर क्या था सब मजदूरों में होड़ मच गई और कार्य बड़ी झड़प के साथ होने लगा । परिणामस्वरुप लालाजी ने अपनी सूझ-बूझ से घाटेवाले सौदे को नफे में बदल दिया । ३- श्रीसंघ गुजरांवाला के प्रमुख मार्गदर्शक रहे, विशेष परिस्थितियों में स्व० श्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिजी भी आपसे विचार विमर्श करते थे । ४- सामाना के जैनमंदिर की भूमि पर अनिधकार कब्जा हटवाने केलिये श्रीसंघ सामाना का मुख्य नेतृत्व किया । ५- श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब के आप कई वर्षों तक प्रधान रहे । ६- श्रीसंघ गुजरांवाला के कई वर्षों तक श्राप प्रधान रहे । ७- श्री श्रात्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब तथा श्री प्रात्मानन्द जैन महासभा की रूपरेखा तैयार करने में आपका पुर्ण सहयोग रहा। मुनि श्री ललितविजयजी को निशतिचार संयम पालने की दृढ़ता प्राप्त करने में आप मार्गदर्शक बने । Jain Education International --:0: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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