SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 612
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाला मानकचन्दजी दूगड़ लाला मानकचन्दजी दूगड़ वंश परिचय शाह नानकचन्दजी के पुत्र शाह दीपचन्दजी के दो पुत्र थे १ - शाह श्रासानन्दजी व १ - शाह बंसीधरजी । शाह बंशीधर जी के पितामह लाला नानकचन्दजी जी की आठवीं पीढ़ी में इस ग्रंथ के लेखक श्री हीरालालजी दूगड़ हैं तथा शाह श्रासानन्दजी के पितामह लाला नानकचन्दजी की आठवीं पीढ़ी में श्राप (लाला मानकचन्द जी), तथा कवि खुशीरामजी हुए हैं। यानी इस ग्रंथ के लेखक एवं लाला मानकचन्दजी और कवि खुशीरामजी भाई-भाई हैं । लाला मानकचन्द जी का परिवार परिचय ५६३ लाला नानकचन्दजी की सातवीं पीढ़ी में लाला गंडामलजी के पाँच पुत्र थे सबसे छोटे लाला मानकचन्दजी का जन्म गुजरांवाला में वि० सं० १९२० में हुआ । आपके क्रमशः दो विवाह हुए उन दोनों पत्नियों में से प्रापके छह पुत्र १ - श्री हुकमचन्द, २- श्री प्यारालाल, ३- श्री हीरालाल ४- श्री छोटेलाल, ५ श्री कपूरचन्द और ६ श्री पृथ्वीराज हुए । प्रथम के तीन छोटी अवस्था में अविवाहित स्वर्गस्थ हो गये। अंतिम के तीनों पुत्र पाकिस्तान बनने के बाद आगरा में अपने-अपने परिवार के साथ आबाद हैं। तीनों भाइयों का व्यवसाय सेनेटरी सामान बनाने के कारखाने हैं । 951 Jain Education International लाला मानकचन्दजी की जीवनी आपके पिता की स्थिति साधारण थी, उनके पुत्र रूप में आप पाँच भाई थे । सबसे छोटे प्राप 1 थे । आपने स्कूल की शिक्षा कोई विशेष रूप से नहीं पायी थी फिर भी आपने अपनी सूझबूझ और कठिन परिश्रम से अपने नगर, जैनसमाज, तथा अपने परिवारों में गौरवपूर्ण स्थान पा लिया था । आपने बुद्धिचातुर्य से अपने व्यापार को खूब चमकाया। बजाजे ( कपड़े ) की दुकान से प्रारंभ करके आपने आगे चलकर अपनी लाखों रुपये की नेक कमायी से अनेक व्यवसाय चालू किये | आप की दुकान पर नगर के उच्चाधिकारी, प्रतिष्ठित धनीमानी व्यवसायी, तथा पढ़ेलिखे विद्वान कपड़ा खरीदने आते थे । श्रापकी सच्चाई की इतनी धाक थी कि आपकी दुकान 'धर्मदुकान' के नाम से प्रसिद्धि पागई थी। छोटे से लेकर बड़े तक, अमीर से गरीब तक कोई भी ग्राहक प्राता श्रापका एकदाम प्रसिद्ध था । इसी सच्चाई के कारण आपने दिन दुगनी रात चौगनी उन्नति की । और आपकी गिनती अच्छे अमीरों में हो गई । पाकिस्तान बनने से पहले ही गुजरांवाला में आप का देहांत हो गया था । श्रापके द्वारा, चल-अचल लाखों रुपये की सम्पत्ति आपका पुत्र परिवार पाकिस्तान में छोड़कर आगरा चला आया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy