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________________ ५३६ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधम ३- साध्वी श्री सुव्रताश्री जी पंजाब प्रांत के कसूरनगर में (वर्तमान में पाकिस्तान अन्तर्गत ) लाला दीनानाथ जी बीसा प्रोसवाल दूगड़ गोत्रीय को धर्मपत्नी श्रीमती ज्ञानवन्ती की कुक्षी से वि० सं० १९६५ में कन्या का जन्म हुआ । इस बालिका का नाम माता-पिता ने चन्द्रकांता रखा । चन्द्रकांता के दो भाई १ - श्री शादीलाल व २ - श्री प्रेमचन्द हैं। पिताजी के स्वर्गवास बाद गृहस्थी का सारा भार दोनों भाइयों पर ना पड़ा । सारा परिवार जैनधर्म का श्रद्धालु तथा आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न है । पाकिस्तान बनने के बाद यह परिवार लुधियाना (पंजाब) में श्राकर श्राबाद हो गया है और हौजरी का व्यवसाय करता है । चन्द्रकांता ने स्कूल की शिक्षा पाने के उपरांत पंजाब विश्वविद्यालय की सर्वोच्च संस्कृत की शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की। पंजाब में जैन साधु-साध्वियों के सानिध्य में इसने प्रतिक्रमण, प्रकरण श्रादि की शिक्षा भी प्राप्त की । प्रतिक्रमण श्रादि धार्मिक क्रियानों, जिनमंदिर में पूजा-प्रक्षाल आदि में रूचि रखने लगी । साधु-साध्वियों के प्रवचनों को भी बड़े चाव से सुनने लगी। धीरे-धीरे संसार की असारता को समझकर इसे वैराग्य हो गया कौर वि० सं० २०१६ वैसाख प्रविष्टे १ दिनांक १३ प्रप्रैल, १९५६ सन् ईस्वी को लुधियाना में आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि से २१ वर्ष की श्रायु में भागवती दीक्षा ग्रहण की और जैनभारती श्री मृगावती श्री जी की शिष्या बनी। नाम सुव्रताश्री रखा गया । सुव्रताश्री जी को स्मरणशक्ति तथा विद्या उपार्जन करने की जिज्ञासा प्रत्यन्त प्रशंसनीय है । मापने अपनी गुरुणी के साथ अहमदाबाद में कई वर्ष पं० बेचारदास जी से संस्कृत, प्राकृत, पाली, व्याकरण, जैनागमों तथा बौद्धग्रंथों का अभ्यास किया। प्रकरण, कर्मग्रंथों आदि अनेक ग्रंथों का भी परीशीलन किया है । अंग्रेजी में मैट्रिक, पंजाब विश्वविद्यालय की हिन्दी भाषा की सर्वोच्च उपाधि 'प्रभाकर तथा इलाहबाद विश्वविद्यालय की हिन्दी की सर्वोच्च परीक्षा साहित्यरत्न भी उत्तम श्रेणी में उत्तीर्ण की हैं। गुजराती भाषा तो मानो आपकी मातृ भाषा बन गई है। पंजाबी तो श्रापकी मातृ भाषा ही है। इन प्राचीन विद्यानों के साथ आपको आधुनिक साहित्य पढ़ने की भी रुचि है । व्याख्यान शैली – इनके व्याख्यान में भी वही सरसता है जो इनकी गुरुणी जी में हैं । त्यागियों का जीवन तो तपस्यामय होता है । सुव्रताश्री भी तपस्यादि करती रहती हैं । ४ - साध्वी सुयषाश्री जी बम्बई में श्री नानजीभाई छेड़ा की धर्मपत्नी लक्ष्मीबहन की कुक्षी से पुत्री जयभारती का वि० सं० २००६ में जन्म हुआ । नानजी भाई के तीन पुत्र भी हैं। जयभारती ने सरकारी स्कूल में मैट्रिक परीक्षा पास की । पश्चात् बम्बई में भायखला में श्राचार्य श्री विजयसमुद्र सुरि तथा श्रागम प्रभाकर मुनि पुण्यविजय जी से दीक्षा ग्रहण की और साध्वी श्री मृगावती जी की तीसरी शिष्या बनी । नाम सुयशाश्री जी रखा गया। प्रकरण साधुक्रिया, दशवेकालिक धार्मिक अभ्यास अपनी गुरुणी जी से किया और संस्कृत का अभ्यास पं० हरिशंकर भाई से किया । कांगड़ा का ऐतिहासिक चतुर्मास अतः वि० सं० २०३५ का चतुर्मास गुरुणी जी के साथ श्री सुज्येष्ठा श्री, श्री सुव्रता श्री, श्री सुयशा जी तीनों शिष्याओं ने कांगड़ा में किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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