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________________ साध्वी श्री मृगावती जी ५३१ ___ ई. सं. १६५३ (वि. सं. २०१०) में कलकत्ता में हुई सर्व-धर्म-परिषद में जब आपने जैन धर्म का प्रतिनिधित्व किया तो आपकी वक्तृत्वकला तथा ज्ञानसौरभ की धाक चारों ओर फैल गई । लाखों की संख्या में जैन तथा अजैन प्रजा प्रापका सार्वजनिक भाषण सुनने को लालायित रहने लगी। पंजाब केसरी श्री गुरु वल्लभ की माशा को शिरोधार्यकर आपने पंजाब जाने के लिये कलकत्ता से विहार कर दिया। मार्ग में पावापुरी में भारत सेवक समाज का शिविर लगा था। श्री गुलजारीलाल नन्दा ने जब सुना कि महासती शीलवती जी व मृगावती जी उधर पा रही हैं तो उन्होंने तुरन्त आगे जाकर शिविर में पधारने की विनती की। पाप श्री जी के उपदेश से पावापुरी मन्दिर में बिजली आदि लगवाकर नगर की शोभा बढ़ाई। श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा और श्री गुलजारीलाल नन्दा आपके सारगर्भित प्रवचन सुनकर बहुत प्रभावित हुए। प्रवचन में लगभग ८०००० की उपस्थित थी । लाउडस्पीकर से तीन मील तक प्रवचन सुना गया। १६०० किलोमीटर का लम्बा रास्ता तय करते हुए आपने झरिया में देवशीभाई को जैन मंदिर और उपाश्रय बनवाने की प्रेरणा दी । पश्चात् पंजाब में पदार्पण किया और प्रथम चतुर्मास अम्बाला शहर में किया। अम्बाला में जन-जागरणकर वल्लभविहार की नींव रखवाई। श्री प्रात्मानन्द जैन डिग्री कालेज के दीक्षान्त समारोह में जब श्री मोरारजी भाई देसाई ने प्रापका प्रवचन सुना तो वे बहुत प्रभावित हुए । आपके ज्ञानगांभीर्य की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। पंजाब के जैनसमाज में फैली हुई कुरीतियों को देखकर आपका मन बड़ा दुःखी हुआ और इनके सुधार के लिये अापने लुधियाना नगर में प्रयास चालू कर दिये। समाज सुधार केलिए सार्वजनिक भाषणों की झड़ी लग गई। जैन और अजैन सभी लोग प्रापकी वाणीपीयूश का पान करने के लिए रुचि और श्रद्धा से आपकी शरण में प्राने लगे। व्याख्यान मंडप श्रोताओं से खचाखच भर जाता था। आपकी ओजस्वी युक्तिपुरस्सर वाणी से प्रभावित होकर सैकड़ों युवकों ने दहेज न लेने की प्रतिज्ञाएं की, सैकड़ों परिवारों ने कुटुम्बी के मरणोपरांत स्यापा आदि का त्याग किया। स्थानीय श्री प्रात्मानन्द जैन हायर सेकेन्डरी स्कूल की इमारत के निर्माण के लिए विद्यादान की महिमा पर आपके प्रोजस्वी भाषणों को सुनकर उपस्थित जनता ने अपने आभूषण तक उतारकर दान में दे दिये और कुछ ही दिनों में लाखों रुपये दान में मिले। जिसके परिणामस्वरूप स्कूल की विशाल नई इमारत बन गई । सारे पंजाब में भ्रमण कर आपने गुरुवल्लभ के सन्देश का घर-घर में प्रचार किया। प्रापके ही प्रयास से अखिल भारतीय जैन श्वेतांबर कान्फरेन्स का ई. स. १९६० में जिनशासनरत्न, राष्ट्रसन्त, शांतमूर्ति आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरिजी को निश्रा में सफल आयोजन हुमा । स्थानकमार्गी सम्प्रदाय के प्रधानाचार्य (प्राचार्यसम्राट) श्री आत्माराम जी महाराज आपके विद्या-अभ्यास से विशेष प्रभावित हुए और पापको यथायोग्य मार्गदर्शन देते रहे ।। ___ कुछ वर्ष पंजाब में विचरकर आप फिर अहमदाबाद आगमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजय जी से विद्याभ्यास केलिये चली गई। उस समय आपके साथ आपकी गुरुणी साध्वी शीलवती जी तथा दो शिष्याएं साध्वी सुज्येष्ठाश्री तथा साध्वी सुव्रताश्री भी थीं। कुछ वर्ष पंडित बेचरदास, पंडित सुखलाल आदि से जैनागम-दर्शन मादि का अभ्यास कर आप वहाँ से सौराष्ट्र, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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