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श्राचार्य श्री विजय उमंग सूरि
रामनगर (गजराँवाला पंजाब) में बीसा ओसवाल गद्दहिया गोत्रीय लाला गंगाराम के पुत्र श्री परमानन्द ने आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि जी के प्रथम शिष्य मुनि श्री विवेकविजय जी वि० सं० १९६६ में दीक्षा ली । नाम मुनि उमंगविजय रखा गया । क्रमशः पंन्यास, गणि तथा प्राचार्य पद प्राप्त किया । प्राचार्य पदवी के बाद नाम विजयोमंग सूरि हुआ । दीक्षा लेकर प्राप आजीवन गुजरात में ही रहे । प्रापका स्वर्गवास साम्बरमती प्रहमदाबाद में हुआ । श्रापने अनेक संस्कृत प्राकृत भाषाओं के जैनग्रंथो का संपादन करवाकर प्रकाशन कराया था ।
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
मुनि शिवविजय
मोतीराम प्रोसवाल दूगड़ गोत्रीय ने लगभग ५५ वर्ष की आयु १९८२ मिति फाल्गुन सुदि ३ को शांतमूर्ति मुनि श्री हंसविजय से दीक्षा ग्रहण की और आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि के शिष्य बने । नाम शिवविजय रखा गया । इन्होंने पंजाबी-हिन्दी मिश्र भाषा में पाँच-सात पुस्तकें लिखीं । इनका स्वर्गवास लुधियाना में लगभग ८५ वर्ष की आयु में हुआ ।
मुनि जितेन्द्र विजय
गुजरांवाला निवासी प्रोसवाय मुन्हानी गौत्रीय लाला मोतीलाल के सुत्र प्रतुलचंद ने प्राचार्य विजयसमुद्र सूरि से गणि जनकविजय जी के शिष्य रूप में दीक्षा ली। नाम मुनि जितेन्द्रविजय रखा गया ।
गुजरांवाला निवासी लाला बड़ौदा (गुजरात) में वि० सं० जी तथा पं० ललितविजय जी
मुनि जयशेखर विजय
पट्टी जिला अमृतसर के श्रोसवाल लाला किशनचन्द जी के पुत्र लाला प्रवेशचन्द के पुत्र प्राचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि से बालमुनि के रूप में दीक्षा ली । नाम मुनि जयशेखर विजय
रखा गया ।
मुनि उद्योतविजय जी श्रादि
( १ ) अंबाला के उत्तराध - लौंकागच्छ के यति उत्तमऋषि ने वि० सं० १९३५ में लुधियाना में विजयानन्द सूरि से वि० सं० १९३५ में संवेगी दीक्षा ग्रहण की। नाम मुनि उद्योतविजय रखा गया ।
(२) यति दुनीचन्द ने आचार्य श्री विजयानन्द सूरि से पंजाब में दीक्षा ली नाम मूनि विनयविजय रखा गया ।
( ३ ) होशियारपुर निवासी उत्तमचन्द ने प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि से दीक्षा ली । नाम कल्याणविजय रखा गया ।
(४) जेजों के मोतीचन्द दूगड़ ने दीक्ष ली । नाम मोतीविजय रखा गया ।
(५) अमृतसर के लाला मोतीचन्द ने वि० सं० १९३७ में पिंडदादनखाँ (पंजाब) में श्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि से दीक्षा ली । नाम मुनि सुन्दर विजय रखा गया ।
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