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________________ ५१८ मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म पौर हस्तिनापुर में वि० सं० २०३४ और २०३५ में दो सफल शिविर नवयुवकों के लग चुके हैं। तीसरा वि० सं० २०३६ में कागड़ा में आयोजित हुआ। लगभग १२ वर्ष पूर्व शांतमूर्ति, जिन-शासन-रत्न, प्राचार्य श्री विजयसमुद्र सूरीश्वर जी का आर्शीवाद प्राप्त कर आप ने सक्रिय रूप से अंबाला जिले के गांवों में मद्यनिषेध, शाकाहार प्रादि के प्रचार का कार्य शुरू किया। प्राप ने अनेक कष्टों और परिषहों को धर्यपर्वक सहन करते हुए १२ वर्षों में लगभग ६०० ग्रामों में विचरण किया है । आप ऐसे-ऐसे स्थानों में भी गये हैं जहाँ धर्म और जनसाधु के नाम से भी लोग अपरिचित थे। परन्तु प्रापके भागीरथ प्रयास से कुछ कार्यकर्ता आपके सहयोगी बने । शराब के ठेके उठवाने के लिए आपकी प्रेरणा से गढ़ीग्राम में सत्याग्रह भी हुआ । पवित्र उद्देश्य में सफलता प्राप्त होती ही है । आज तक १८ गांवों से शराब के ठेके उठ चुके हैं । अम्बाला जिले के गांवों में भी प्रापको अत्यन्त उच्चस्तर का चरित्रवान् महात्मा समझा जाता है । जैनसाधु की पवित्रता की छाप से जन-जन प्रभावित हुए हैं। आपकी प्रेरणा से स्थापित और संगठित हरियाणा ग्राम प्रायोगिक संघ (प्रधान कार्यालय शहजादपुर जिला अंबाला) आपके कार्य का सतत् प्रचार कर रहा हैं । ___ "सर्वधर्म समन्वयी" की अलंकारिक पदवी आप को आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि जी ने बम्बई में एक विधिवत सभा में (जिस में प्रागमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजय जी थे) प्रदान की थी। जिन-शासन-रत्न आचार्य श्री ने मुरादाबाद की ओर विहार करने से पूर्व कुछ ऐसे क्षेत्रों में विचरण किया जिनमें आपने काम किया है । एक जैन घर न होते हुए भी प्राचार्य श्री का भाव भीना और भव्य स्वागत हुआ । वहाँ की जनता के उत्साह और कार्य को देखकर प्राचार्य श्री ने अपने मुखारविन्द से फरमाया, "जितना सुनता था उनसे कई गुणा अधिक देखा।" गणि जी सर्वधर्म समभाव का भी प्रचार करते हैं इस लिए इन्हें सर्वधर्म समन्वयी के नाम से याद किया जा रहा है । आप के प्रवचन अत्यन्त प्रभावशाली एवं उत्साहवर्धक होते हैं। श्री जिनशासन रत्न ने वि० सं० २०११ में सूरत (गुजरात) में आप को गणि की उपाधि से अलंकृत किया । बम्बई में अनेक श्री जैनसंघों ने प्राचार्य श्री जी से विनती की कि श्री जनकविजय जी को प्राचार्य पद प्रदान करके अपना पट्टधर स्थापित करें। परन्तु आपको पद से मोह न था। कार्य से था। प्रापने यह प्रस्ताव स्वीकृत नहीं किया। प्राचार्य श्री के जीवन काल में तथा उनके स्वर्गवास के बाद भी अनेक श्रीसंघों की उत्कट भावना थी कि आपको ही श्री जिनशासनरत्न का पट्टधर बनाया जाय। पर आपने पुनः मनाकर दिया। ___ "सर्वधर्मसमन्वयी" की अलंकारिक पदवी प्रापकों आचार्य श्री विजयसमुद्र सरि जी ने बम्बई में एक विधिवत सभा में (जिसमें आगमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजय जी भी थे) प्रदान की थी। मुनि हेमचन्द्र विजय व मुनि यशोभद्रविजय जंडियाला गुरु जिला अमृतसर (पंजाब) में बीसा प्रोसवाल दूग्गड़ गोत्रीय लाला गुरुदित्ता मल जी के तीन पुत्र थे । १. श्री गोपीमल, २. श्री बाबूमल और ३. श्री मोहकमचन्द । ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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