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________________ श्राचार्य विजय प्रकाशचन्द्र सूरि ६- १६६६ डभोई १० - १६७० बम्बई ११ - १९७१ रतलाम १२- १६७२ १३-१६७३ १४ – १६७४ १५ - १६७५ बदनावर वेरावल बम्बई उदयपुर - सौराष्ट्र २ कुल चौमासे २२ Jain Education International गुजरात १६ – १६७६ महाराष्ट्र १७-- १६७७ मालवा १८.--१६७८ मालवा १६- १६७६ सौराष्ट्र २०- १९८० महाराष्ट्र २१ - १६८१ राजस्थान २२ - १६८२ पंजाब गुजरात ६ ४ बम्बई २ बाली बीकानेर गुजरांवाला सनखतरा जंडियाला गुरु लाहौर गुजरांवाला राजस्थान ३ For Private & Personal Use Only राजस्थान "1 पंजाब " 11 33 પૂ 31 प्राचार्य विजयप्रकाशचन्द्र सूरि वि. सं. १९६८ मिति फाल्गुण सुदि ३ बुधवार (ता० २१ - २ - १६१२) को सिरोही जिलांतर्गत जाडोली गांव में पोरवाड़ सुमतीदेवी की कुक्षी से पिता ताराचन्द के घर बालक का जन्म हुआ । माता-पिता ने बालक का नाम हजारीमल रखा । युवावस्था होने पर बम्बई में जाकर ३२ वर्ष की श्रायु तक व्यवसाय किया । वि. सं. २००१ चैत्र वदी ६ के दिन पालीताना में श्री विजयवल्लभ सूरि जी के शिष्य श्री ललितविजय जी के शिष्य मुनि प्रभाविजय अपर नाम पूर्णानन्दविजय जी से दीक्षा ग्रहण कर उन्हीं के शिष्य बने । नाम मुनि प्रकाशविजय जी रखा गया । वि. सं. २००६ तक जीव विचार आदि चार प्रकरण, तीन भाष्य, कर्मग्रंथों आदि का अभ्यास किया । वि. सं. २००६ में प्राचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि ने अलग चौमासा करने की आज्ञा दी । वि. सं. २००७ चैत्रमास में पालीताना में गांव सिलदर निवासी नथमल को दीक्षा दी और अपना पहला शिष्य बनाया। नाम मुनि नन्दनविजय रखा । नथमल विवाहित था सारे परिवार को त्यागकर वैराग्यपूर्ण भावों से दीक्षा ग्रहण की। तपस्या तथा जाप की अधिक रुचि है आजकल हस्तिनापुर तीर्थ में श्री प्रात्मानन्द जैन बालाश्रम में स्थानापति हैं । बड़ी दीक्षा भी पालीताना में मालवा २ वि. सं. २००८ में गौड़ी जी के उपाश्रय बम्बई में अहमदाबाद निवासी रमणलाल को दीक्षा दो नाम निरंजनविजय रखा। बड़ी दीक्षा थाना ( बम्बई ) में दी । यह आपका दूसरा शिष्य हुआ । इस अवसर पर थाना में प्रकाशविजय जी के संसारी भतीजे पुखराज ने आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि से दीक्षा ली । नाम पद्मविजय रखा गया और शिष्य मुनि प्रकाशविजय जी का बनाया । बड़ी दीक्षा भी थाना में हुई । आचार्य श्री विजयवल्लभ मूरि जी की प्रेरणा से वि. सं. २००६ को नन्दनविजय और पद्मविजय को साथ में लेकर तथा दादा गुरुभाई प्रशांतमूर्ति मुनि श्री विचारविजय तत् शिष्य वसंतविजय जी के साथ प्रकाशविजय जी ने पंजाब की तरफ़ विहार किया । चौमासा पालेज (गुजरात) में किया । यहां श्री श्रात्मानन्द जैनज्ञान भंडार की स्थापना की । वि. सं. २०१० का चौमासा किनारी बाज़ार दिल्ली में किया । आप पांच साधु इस समय थे प्रशांतमूर्ति मुनि श्री विचारविजय जी मुनि बसंतविजय जी, मुनि प्रकाशविजय जी, मुनि नन्दन विजय जी, मुनि पद्मविजय जी । www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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