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श्री विजयललित सूरि
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मरुधर (मारवाड़-राजस्थान) में अनेक जैन शिक्षण संस्थाएं स्थापित की जिस से यह धरा साक्षर बनी । इस उपकार के उपलक्ष में वि० सं० १६६० वैसाख शुक्ला ३ गुरुवार को श्री बामणवाड़ा तीर्थ में आयोजित भारतवर्षीय पोरवाड़ महासम्मेलन में प्राप श्री को मरुधरोद्धारक एवं प्रखर शिक्षा प्रचारक की पदवी से विभूषित किया गया ।
वि० सं० १६६१ वैसाख सुदि १० सोमवार को वीसलपुर गांव (रेलवेस्टेशन जवाईबाँध) में प्राप को उपाध्याय पद प्रदान किया गया।
वि० सं० १९६३ वैसाख शुक्ला ६ को पूज्य गुरुदेव की निश्रा में पाप को आचार्य पदवी दी गई।
मंगलकार्य १. वि० सं० १९६५ में गुजरांवाला (पंजाब) में सनातनमियों के साथ शास्त्रार्थ के आह्वान पर श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ की विजय प्राप्ति में पूर्ण सहयोग ।
__२. वि० सं० १९६१ वैसाख सुदि १० के दिन वीसलपुर में श्री धर्मनाथ मंदिर को प्रतिष्ठा और अंजनशलाका।
३. वि० सं० १९९७ मार्गशीर्ष सदि ११ को उम्मेदपुर (जिला जालोर राजस्थान) में श्री प्रमीझरा सहस्रफणा पार्श्वनाथ जिनालय की प्रतिष्ठा व अंजनशलाका ।
४. वि० सं० २००० में व रकाणा (राजस्थान) महातीर्थ में उपधान तप की पाराधना आपके सानिध्य में हुई। इस अवसर पर दो दीक्षाएं भी हुईं ।
५. वि० सं० २००३ मिगसर सुदी १३ को कालंद्री ग्राम (जिला सिरोही राजस्थान) में नवनिर्मित नमिनाथ भगवान के जिनालय की प्रतिष्ठा और अंजनशलामा पाप ने कराई।
सरस्वती मंदिर १. गुजरांवाला पंजाब में श्री प्रात्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब की स्थापना वि० सं० १९८१ माध सुदि ५ के शुभ दिन प्राप के अपूर्व योगदान से बम्बई निवासी सेठ विट्ठलदास ठाकुरदास ने रुपया बत्तीस हजार की रकम आप की प्रेरणा से गुरुकुल केलिये दान में दी जिसके फलस्वरूप पूज्य गुरुदेव की सरस्वती मंदिर की स्थापना की प्रतिज्ञा पूर्ण हुई।
२. वि० सं० १९८७ मगसर सुदि १३ को उम्मेदपुर में गुरुदेव की सप्रेरणा से श्री पार्श्वनाथ जैन बालाश्रम की स्थापना की। वि० सं० १९९७ पोस वदि १० को इस बालाश्रम का फालना (राजस्थान) में स्थानान्तरण किया गया । इसका विकास श्री पार्श्वनाथ उम्मेद माध्यमिक विद्यालय एवं श्री पार्श्वनाथ उम्मेद महाविद्यालय के रूप में हुआ है। प्रारंभ में लोकमान्य श्री गुलाबचन्द जी ढढा M.A. संस्था के आनरेरी गवर्नर का इस की उन्नति में महान योगदान रहा।
३. महावीर जैन विद्यालय बम्बई में प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि ने वि०सं० १६७१ में स्थापना की थी। गुरुदेव के पंजाब में पधार जाने के कारण कुछ विघ्नसंतोषी विरोधी तत्वों के प्रचार के कारण विद्यालय की स्थिति डांवाडोल हो गई थी । पूज्य गुरुदेव की प्राज्ञा से इस विद्यालय के विकास और प्रगति के लिये होशियारपुर (पंजाब) से विहार करके आप तुरंत बम्बई पधारे । यहाँ के आपके दो चौमासों में अनेक जैन दानवीरों ने पाप की प्रेरणा से लाखों रुपये विद्यालय केलिये दान में देकर उसकी जड़ों को सुदृढ़ किया।
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