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तपगच्छ पट्टावली
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इस समय आपके साथ १६ साधु थे। प्रतिष्ठा विधिकारक चिमनलाल महासुखलाल अहमदाबाद से और इनके साथ संगीतकार जेठालाल भाई भी यहाँ आये थे। छोटी साधड़ी मेवाड़ से वैद्य पूनमचन्दजी नागौरी और जयपुर से धनरूपमलजी नागौरी भी प्रतिष्ठा विधिकारक रूप में आये थे। वे दोनों नागौरी सगे भाई हैं।
इस अंजनशलाका तथा प्रतिष्ठा महोत्सव में श्री ऋषभदेव के पांच कल्याणकों का विधिवत महोत्सव भी किया गया था। प्रभु का देवलोक से च्यवकर पाना, माता का १४ महास्वप्नों को देखना, स्वप्नों का फल बतलाना, प्रभु का जन्म, चौसठ इन्द्र तथा छप्पन दिककुमारि का जन्ममहोत्सव मनाने के लिये पाना। प्रभु का जन्माभिषेक, राज्य सिंहासनारूढ़ होना, दीक्षा तथा निर्वाण महोत्सव आदि सब दृश्य नाटक के रूप में साक्षात् दिखलाये गये थे। इस प्रकार अनेक कार्यक्रम सम्पन्न हुए। यह सारा महोत्सव सोत्साह निर्विघ्न समाप्त हमा।
भारतवर्ष में यह पारणामंदिर सर्वप्रथम स्थापित किया गया है और इसकी प्रतिष्ठा कराने का सौभाग्य आपको प्राप्त हुआ है।
इस प्रतिष्ठा महोत्सव पर भारत के सब प्रदेशों के श्राविका-श्रावक आये थे जिनकी संख्या लगभग पांच हजार थी।
कांगड़ा तीर्थ पर नये मंदिर का निर्माण तथा तीर्थोद्धार वि० सं० २०३५ का चतुर्मास महत्तरा साध्वी श्री मृगावती जी ने तीन शिष्याओं के साथ कांगड़ा किला की निकटवर्ती धर्मशाला में किया। कई शताब्दियों से यहाँ जैन साधु-साध्वियों का चतुर्मास नहीं हुआ था और यहां जैनों की बस्ती भी नहीं है। कांगड़ा किला में बहुत प्राचीन प्रतिमा श्री ऋषभदेव प्रभु की विराजमान है और वह सरकारी पुरातत्त्व विभाग के अधिकार में है। साध्वी जी के यहाँ चतुर्मास करने से इस प्रतिमा की पूजा प्रक्षाल का सरकार की तरफ से साध्वी जी के प्रयत्नों और प्रभाव से तथा श्री विजयसिंहजी नाहर कलकत्ता वालों के सहयोग से जैनसमाज को अधिकार प्राप्त हो गया। जैनश्वेतांबर धर्मशाला का नवनिर्माण हुआ और वि० सं० २०३५ माघ सुदि १२ तदनुसार ता० ६-२-१९७६ ई० को यहाँ प्राचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरि द्वारा नये जैनश्वेतांबर मंदिर का शिलान्यास हुआ। जिससे इस अत्यन्त प्राचीन जैनतीर्थ का पुनरोद्धार हुआ। यह सारा श्रेय साध्वीजी महाराज को प्राप्त हुआ है। इस शिलान्यास के अवसर पर पंजाब से हजारों श्रावक-श्राविकायें तथा प्राचार्यश्री की निश्रा में बटाला से एक पैदल यात्रा संघ भी यहाँ पाए थे।
___ क्योंकि विक्रम की १६वीं, २०वीं शताब्दी से पंजाब में जैनश्वेतांबर तपागच्छ के साधुसाध्वियां ही विचरणकर जैनधर्म का उद्योत कर रहे हैं अत: यहाँ पर उनकी पट्टावली दी जाती है।
तपागच्छ पट्टावली १. गणधर श्री सुधर्मास्वामी [निर्ग्रन्थगण । महावीर के ६४ वर्ष बाद निर्वाण
गच्छ] भगवान महावीर के २० वर्ष बाद हुआ । निर्वाण।
३. श्री प्रभवस्वामी [भगवान महावीर के २. श्री जम्बूस्वामी (अंतिम केवली) प्रभु ७५ वर्ष बाद स्व०]
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