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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म गई । उस जन्मकुंडली का ब्लाक चित्र दे रहे हैं जो लाला दीनानाथ जी ने अपने हाथ से लिखकर प्राचार्य श्री को भेजी थी।
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'निज पंन्यास श्री विद्याविजय जी ने इस जन्मकुंडली को अपने पत्र के साथ प्राचार्य श्री के पास भेजा और लिखा कि
"पुज्य श्री की सेवा में चौधरी दीनानाथ के द्वारा निर्मित आपकी नष्ट जन्मकुडली भेजता है। आप इसे देखने की कृपा करें। परम हर्ष का विषय है कि यह जन्मकुडली भृगुसंहिता से बराबर मिल गई है जिस के फलादेश की नकल पाप श्री की सेवा में भेज रहा हैं। इस से भी 'अधिक प्रसन्नता की बात यह है कि भृगुसंहिता के इस फलादेश में यह भी वर्णन है कि आप श्री
एक जन्म और बीच में लेकर अगले जन्म में मोक्ष (निर्वाण) प्राप्त करलेंगे।" - प्राचार्य श्री विजयसुमद्र सूरि ने आपके आदर्श जीवन नाम की पुस्तक का संपादन तथा प्रकाशन करते समय अपनी प्रस्तावना में जो आप की जन्म, दीक्षा, स्वर्गवास मादि की कुडलियाँ दी हैं, वे सब इसी नष्ट जन्मकुंडली से दो ज्योतिषियों ने तैयार करके दी हैं जिन के नाम श्री विजय समुद्रसूरि जी ने अपनी प्रस्तावना को टिप्पणी में दिये हैं। इस आदर्श जीवन का प्रकाशन वि० सं० २०१६ (चौधरी साहब की नष्ट जन्मकृडली पर से ३२ वर्ष बाद तैयार की गई थीं) में हा है और श्री प्रात्मानन्द जैन महासभा पंजाब ने अंबाला नगर से प्रकाशित किया है। 1. यह पत्र श्री वल्लभस्मारक जैनशास्त्र भंडार दिल्ली में सुरक्षित है। हम ने इस पत्र का
संक्षिप्त सारांश दिया हैं। 2. यद्यपि प्राचार्य विजयसमुद्र सूरि जी ने जो कुंडलियां प्रादर्शजीवन में दी हैं उन को लिखने
लिखानेवालों का धन्यवाद तो किया है परन्तु इस नष्ट जन्मकुडली के प्रादि निर्माता का नाम भी अवश्य देना चाहिये था।
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