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________________ पंजाब में धर्मक्रांति सफल हुए । पंजाब में सैकड़ों परिवारों ने शुद्धमार्ग अपनाया और उसके ज्ञान को आपके द्वारा प्राप्त कर सन्मार्गगामी बने । श्रापके ३५ साधु शिष्य थे जिनमें पाँच प्रति प्रसिद्ध हुए हैं । १ - मुक्तिविजय जी (मूलचन्दजी), २ – वृद्धिविजय ( वृद्धिचन्द) जी, ३- प्राचार्य विजयानन्द सूरि ( श्रात्माराम ) जी, ४ - मुनि खांतिविजय जी तथा ५ – मुनि नीतिविजय जी । पहले के चार पंजाबी थे और अंतिम एक गुजराती थे । श्रापने चतुर्मास किये - पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र, उत्तरप्रदेश - कुल १८ १० ५ १२ ४ १ ५० पके द्वारा प्रतिबोधित श्रागमों के ज्ञाता विद्वान मुख्य श्रावक - १. गुजरांवाला - लाला धर्मयश जी दुग्गड़ के सुपुत्र लाला कर्मचन्द जी शास्त्री जिनके साथ सर्वप्रथम शास्त्र चर्चा करके अपनी धारणा को दृढ़ किया और शुद्धधर्म के प्रचार का श्रीगणेश किया । शास्त्री जी के प्रभाव से सारा गुजरांवाला का संघ सत्यधर्म का अनुयायी बना । शास्त्री जी ने वि० सं० १६०२ से १६०७ तक लगातार छह वर्षों तक आपके प्रथम शिष्य मुलचन्द जी को जैन शास्त्रों का अभ्यास कराकर सत्यधर्म के दृढ़ संस्कार दिये । दूगड़ । २. पपनाखा - लाला गणेशशाह दुग्गड़ तथा लाला जवन्दामल गद्दहिया इन दोनों के प्रतिबोध के बाद इनके सहयोग से यहाँ का सारा संघ शुद्धधर्म का अनुयायी बना । ३. रामनगर- लाला मानकचन्द जी गद्दहिया हकीम । ३२ मूलागमों के जानकार थे । इनसे आपने शास्त्र चर्चा करके प्रतिबोधित किया और इनके साथ स रा संघ आपका अन्यायी हो गया । ४- लाहौर - लाला साहिब दित्तामल, लाला हरिराम और लाला बूटेशाह जौहरी आदि । ५. अमृतसर - लाला उत्तमचन्द प्रादि । ६. पिंडदानखां -- लाला देवीसहाय अनविधपारख । ૪ ७. रावलपिंडी - प्रज्ञाचक्षु-तपस्वी मोहनलाल जख । ८ अम्बाला शहर -लाला मोहरसिंह, लाला सरस्वतीमल अग्रवाल । ६ दिल्ली ---लाला भोलानाथ टांक, शिवजीराय छजलानी इन्द्रजीत दूगड़ तथा हीरालाल १०. जम्मू - लाला सोभाराम प्रोसवाल भावड़ा कवि । ११. पसरूर किला सोभासिंह- - लाला जिवन्दशाह दूगड़ । इसी प्रकार रावलपिंडी से लेकर दिल्ली तक प्रत्येक गाँव-नगर में आपके विद्वान भक्त श्रावक थे । आपके जीवन की मुख्य घटनाएं १. वि० सं० १८६३ ( ई० स० १७०६ ) में पंजाब में दलुम्रा नामक गाँव में सिक्ख धर्मानुयायी जाट क्षत्रिय वंश में चौधरी टेकसिंह गिल गोत्रीय को पत्नी कर्मोदेवी की कुक्षी से आप का जन्म हुआ । जन्म नाम माता-पिता द्वारा रखा हुआ दलसिंह परन्तु प्रापका नाम दलसिंह प्रसिद्धि पाया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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