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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
श्री जिनभद्र गणि, श्री अभयदेव, उपाध्याय यशोविजय, उपाध्याय विनयविजय, प्राचार्य विजयानन्द सरि (पात्माराम) आदि अनेक जैनाचार्यो तथा विद्वानों ने जैन साहित्य को समद्ध बनाने में अपने जीवन की व्यतीत किया है।
अंतिम साठ-सत्तर वर्षों से जैन साहित्य विशेष प्रचार में आने लगा है। तब से इंगलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली और चीन प्रादि पाश्चात्य देशों में भी जैन साहित्य का अच्छा प्रचार हो रहा है। आज तो अनेक विद्वान देश-विदेश में जैन साहित्य के प्रभ्यास-संपादन तथा प्रचार में लगे हुए हैं। इंगलिश, जर्मनी, फ्रेंच प्रादि विदेशी भाषाओं में भी जैन साहित्य पर्याप्त प्रकाशित हो रहा है ।
__ जैन साहित्य के ताड़पत्रों पर लिखे हुए हजारों वर्ष प्राचीन ग्रंथरत्न आज भी जेसलमेर, पाटण, अहमदाबाद, दिल्ली, बड़ोदा आदि अनेक जैनग्रंथ भंडारों में सुरक्षित हैं। काग़ज़ पर लिखे हए भी जैन साहित्य की कमी नहीं हैं। इनमें प्राचीन लिपियाँ, चित्रकला और सुन्दर लेखन प्राज भी भारतीय साहित्य सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण विद्वानों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
अधिक क्या लिखें यदि विश्व में जैन साहित्य, कला, वास्तुकला ने विकास न पाया होता तो इन कलानों का विश्व में नाम शेष रह जाता।
इस ग्रंथ में साहित्य का विवरण बहुत ही सीमित दिया है क्योंकि विस्तार करने से ग्रंथ विस्तार का भय है।
अर्हत् आदिनाथ की शासनदेवी
श्री चक्रेश्वरी देवी
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