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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
६६. गंडाख्यान कथानकम यति गरुदास ऋषि १६१७ पिपनाखा ६७. नवतत्त्व विचारणा
मुनि श्री बूटेराय १८६४.अंबाला
(बुद्धिविजय) १८, मंडल विचार कुलक मुनि विनयकुशल (तपा) १६५२ मुलतान ६६. अढीद्वीप का विचार लाला धर्मयश दुग्गड़ १८८७ गुजरांवाला १००. द्रव्य प्रकाश
मुनि देवचन्द्र
१७६८ मुलतान १०१. थविरावली
यति भवानीदास १०२. राजु पचीसी
प्रानन्दचन्द्र विनोदी
- सनाम १०३. मोह विवेक संबंध
समयकीर्ति वाचक १८२२ मुलतान १०४. मेघविनोद
यति रामचन्द्र
१७२० बन्नु १०५. रामविनोद
यति रामचन्द्र १७२२ सक्कीशहर (कालाबाग़) १०६. वैद्यसंजीवन (लोलमराज) यति गंग
१८७२ अमृतसर १०७. वैद्यमनोज्ञ
नयनसुख
१६४६ सिरहंद १०८. निदानप्रकाश
यति गंग
१८७२ तिरहरद नगर १०६. चिकित्सा शास्त्र
यति रामाऋषि १६०० जंडियाला गुरु ११०. मेघकुमार गीतं
कीर्तिवर्धन
१७४२ सिरसा १११. दयाधर्म बारहमासा कवि शेरुराम
१६३२ लुधियाना ११२. पंजाब के मंदिरों आदि की कवि चन्दूलाल १६५० मालेरकोटला
कवितामय ऐतिहासिक रचनाएं ११३. मांसाहार विचार
ईश्वरलाल बेगानी १६६० मुलतान ११४. भगवान महावीर और प्रो० पृथ्वीराज मुन्हानी २०१० अंबाला
महात्मा गांधी ११५. सुन्दरविलास
कवि सुन्दरदास
२०वीं शती जीरा ११६. प्रात्मचरित्र
बाबूराम नौलखा प्लीडर २०वीं शती जीरा ११७. ज्ञानप्रकाश
यति नन्दलाल ऋषि १६०६ कपूरथला ११८. कर्मछत्रीसी
समयसुन्दरोपाध्याय १६६८ मुलतान उपर्युक्त ग्रंथरचना की तालिका से यह स्पष्ट है कि विक्रम की १७वीं शताब्दी से पहले की दो-चार रचनाओं को छोड़कर पंजाब-सिन्ध आदि उत्तर भारत में की गई रचनाए उपलब्ध नहीं हैं । कारण यह है कि यहां के ग्रंथभंडारों, स्मारकों, मंदिरों, मूर्तियों आदि को पंजाब में विदेशियों के लगातार पाक्रमणों के कारण नष्ट-भ्रष्ट किया जाता रहा है। १७ वीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी की प्राप्त रचनामों से यह भी स्पष्ट है कि खरतरगच्छीय साधनों का विहार सिन्ध में प्रायः मुलतान तक ही रहा हैं । यदि कोई एक पंजाब में आये भी हैं तो मात्र कांगड़ा की यात्रा निमित्त अथवा जिन चन्द्र सूरि मुग़ल सम्राट के साथ साक्षात्कार करने केलिये लाहौर में आये हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, सीमाप्रांत, आदि क्षेत्रों में इन के आवागमन के प्रमाण
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