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________________ जैन संस्थाएं ३७६ 1 सन् ईस्वी १९२१ में स्वर्गवासी उपाध्याय श्री सोहनविजय जी पंजाब पधारे । श्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि (ग्रात्माराम जी की स्वर्गवास तिथि ज्येष्ठ सुदि ८ को हर साल गुजरांवाला में उनके समाधि भवन पर एक उत्सव के रूप में मनाई जाती थी । गुरुदेव को श्रद्धाभेंट करने के लिये भक्तजन दूर-दूर से यहां आते थे। उपाध्याय जी अपने गुरु श्री विजयवल्लभ सूरि का सन्देश लेकर प्राये थे । जीरा निवासी लाला बाबूराम जी नौलखा एम. ए. एल. एल. बी. प्लीडर के द्वारा भी प्राचार्य श्री ने बीकानेर से पंजाब श्रीसंघ को सन्देश भेजा कि पंजाब के भाई महासभा के रूप में अपना संगठन करें। उसी सम्मेलन में उपाध्याय जी ने समाज को जीवनीशक्ति का मंत्र बतलाया और अपने व्याख्यान में इस बात पर विशेष जोर दिया कि समाज की बिखरी हुई शक्ति एक जगह एकत्रित हो । जैन समाज में ओसवाल, खंडेलवाल, अग्रवाल आदि जातिभेद का मूलोच्छेद हो । फलतः गुजरांवाला की तीर्थभूमि में ही १६ सितम्बर १९२९ ई० को इस महान् संस्था का श्रीगणेश हुआ और लाहौर निवासी लाला मोतीलाल जौहरी (मोतीलाल बनारसीदास ओरियंटल पुस्तक प्रकाशक फर्म के मालिक ) इसके सर्वप्रथम सभापति निर्वाचित हुए । उसी समय पंजाब के प्रत्येक नगर में सभात्रों को स्थापित करके उन्हें महासभा के माध्यम से संगठित करने का निश्चय किया गया । इस अधिवेशन में पंजाब श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनसंघ ने प्रोसवाल, खंडेलवाल आदि जातिभेद को समाप्त करके सब जैनों में बिना किसी भेदभाव के रोटी-बेटी व्यवहार चालू करने का सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया। यह प्रस्ताव मात्र कागज़ के पृष्ठों पर ही न लिखा रह जावे इसलिये इसी अधिवेशन में खंडेलवाल लाला गोपीचन्द जी रहीस सनखतरा निवासी ने अपनी पुत्री सी० प्रसीनीदेवी का रिश्ता अपने सुपुत्र बाबू भोलानाथ की प्रेरणा से गुजरांवाला निवासी लाला बूटामल लोढ़ा के सुपुत्र बिहारीलाल के साथ कर दिया और बिहारीलाल ने अपनी बहन त्रिलोकसुन्दरी का रिश्ता लाला अनन्तराम के सुपुत्र कपूरचन्द खंडेलवाल सनखतरा वाले के साथ कर दिया । अधिवेशन समाप्त हो जाने के बाद कुछ पुराने रूढ़िवादियों ने बाबू भोलानाथ को उनके परिवार सहित अपनी समाज से इस रिश्ते के कारण वहिष्कार कर देने के लिये बड़ी उछलकूद की, परन्तु उनका कुछ ज़ोर न चल पाया। विजय भोलानाथ की हुई, जिससे इस क्रांतिकारी समयोपयोगी कार्य के लिये विजेता सेनानी के रूप में समाज को रीढ़ की हड्डी के समान जोड़ने में वे श्रमर कीर्तिमान हो गये । हर्ष का विषय है कि प्राज पंजाब जैनसंघ में दसा - बीसा, प्रोसवाल, अग्रवाल, खंडेलवाल, पोरवाड़, दिगम्बर, श्वेतांबर, स्थानकवासी, तेरापंथ आदि में प्रापसी विवाह शादी के रिश्ते नातों की बाधक सब दीवारें ढह चुकी है और बिना किसी भेदभाव के आपस में दूध और शक्कर की तरह एक रूप होकर सामाजिक संगठन उभर चुका है । इस सामाजिक संगठन का पूरा-पूरा श्रेय उपाध्याय श्री सोहनविजय जी तथा बाबू भोलानाथ जी खंडेलवाल श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक समाज के वीर सेनानियों को ही है कि जिन दोनों महान वीरों ने रूढ़िवादियों की आलोचनाओं और धमकियों की परवाह न करते हुए दृढ़ संकल्प रहे । प्रधिवेशन - आगामी वर्ष इसका अधिवेशन अम्बाला शहर में हुआ। इसमें महासभा का 1. इससे पहले खंडेलवाल, प्रोसवाल, अग्रवाल अपनी-अपनी जाति में ही विबाह शादी करते थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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