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जैन शिक्षण संस्थाएं का कार्य बाकी है। मेरे बाद तुमने इस कार्य को करना है ! भूलना नहीं और मेरे बाद पंजाब को तुमने संभालना है।"
बल्लभ (विजयवल्लभ सूरि) ने नतमस्तक होकर तहत्ति (आपकी आज्ञा शिरोधार्य है) कहकर गुरु की आज्ञा को मूर्तरूप देने का दृढ़ संकल्प किया।
सरस्वती मंदिर की स्थापना के प्रयास चालू (१) आपने इसी चौमासे में योजना बनाई कि १---पंजाब के सभी नगरों में जहाँ-जहाँ जैनी आबाद हैं वहाँ-वहाँ जैन पाठशालाएं चालू की जावें और उन पाठशालाओं का खर्चा यहाँ के स्थानीय संघ चलावें । २- श्री प्रात्मानन्द जैन महाविद्यालय (कालेज अथवा गुरुकुल) स्थापित किया जावे जो सरस्वती मंदिर की भावना को पूरी कर सके । इसके लिए पाईफंड नाम का एक फंड भी कायम किया गया। पीछे जाकर यह फंड बन्द हो गया ।
(२) मिति वैसाख सुदि ११ वि० सं० १९५८ को अमृतसर में श्री प्रात्मानन्द जैन पाठशाला पंजाब की उचित स्थान पर स्थापना का निर्णय किया गया और फंड के लिए इस प्रकार निर्णय किया गया
१-इस पाठशाला (महाविद्यालय- सरस्वती मंदिर) की स्थापना के लिए जो फंड श्री संघ पंजाब ने स्थापित किया है उसमें जिन-जिन नगरों ने जो चन्दे लिखवाये हैं वे दे देने चाहिये
और जिन्होंने अभी तक नहीं लिखवायें उन्हें लिखवा देने चाहिये। २-- इस पाठशाला के लिए पुत्र के विवाह पर पाँच रुपये, पुत्री के विवाह पर दो रुपये देने चाहिये। ३--विवाह के समय जब जिनमंदिर में नकद रुपये का चढ़ावा चढ़ाया जाता है, उसी प्रकार इस महाविद्यालय के फंड के लिए भी चढ़ावा दिया जावे । ४–पाईफ्रेंड जो चालू किया गया है उसमें पंजाब के प्रत्येक श्रावकश्राविका को कम से कम एक पाई प्रतिदिन देनी चाहिए । ५--पर्युषण पर्व पर जो कल्पसूत्र की बोलियाँ और ज्ञानपंचमी आदि के समय जो चढ़ावा होता है वह सब इस महाविद्यालय के फंड में दिया जावे । ६–जो लोग मुनिराजों के दर्शन के लिए प्रावें उन्हें भी यथाशक्ति इस फंड में कुछ न कुछ देना चाहिये ।
इस प्रकार अनेक बार प्रयास चालू रहे किन्तु पंजाब महाविद्यालय की स्थापना न हो
पाई।
इस सरस्वती मंदिर की स्थापना केलिये आप ने अनेक प्रकार के अभिग्रह तथा त्याग तप किये । वि० सं० १९८१ मार्गशीर्ष सुदि ५ को प्राचार्य पदवी पाने के बाद प्राप गुजरांवाला पधारे
और प्रवेश के समय पंजाब के सब नगरों से आये हुए एकत्रित श्रावकों को उपदेश देते हुए आप ने फरमाया कि1. इस पाई फंड का जो रुपया अभी तक इकट्ठा हो पाया था वह सारा मुनि वल्लभविजय जी की प्राज्ञा
से वेदांताचार्य बृजलाल ब्राह्मण तथा पं० सुखलाल संघवी न्याय-व्याकरणाचार्य को काशी में अभ्यास कराने
के लिये खर्च किया गया। 2. जंडीयाला गुरु की मंदिर प्रतिष्ठा के बाद अमृतसर में एकत्रित हुए सारे पंजाब श्वेतांबर जैनसंघ की सभा में
जो पूज्य बाबा मुनि कुशलविजय जी के सभापतित्व में हुई थी उसमें निर्णय लिया गया था।
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