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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (२३) करांची-यह नगर सिंध की राजधानी, भारत की बन्दरगाह (Seaport) और व्यापार का अच्छा केन्द्र था। ईसा की १८ वीं शताब्दी में यह नगर बसा । ई. स. १८४० में यहाँ जैनलोग पाकर आबाद हुए । मारवाड़ी, कच्छी, गुजराती, पंजाबी, काठियावाड़ी लगभग ४००० जैन यहाँ प्राबाद थे। इनमें श्वेताम्बर जैन और स्थानकवासी अधिक थे । तेरापंथी और दिगम्बर बहुत कम थे। १-श्वेताम्बर जैन मंदिर-मूलनायक श्री पार्श्वनाथ (रणछोड़ लाईन में) १-जैन श्वेतांबर उपाश्रय १-व्याख्यान हाल १-स्थानक १-कन्या जैन धार्मिक पाठशाला । १-लड़कों की जैनधार्मिक पाठशाला १-पुस्तकालय-वाचनालय २-दो पांजरापोल (अपंग पशु-पक्षियों के संरक्षण तथा चिकित्सा के लिय) १-व्यायामशाला। १-उद्योग-हुन्नर शाला। १-दिगम्बर मंदिर ५-सरहद्दी सूबा (भारत का पश्चिमोर र प्रांत) (२४ से २५) (२४)-काला बाग १-जैन श्वेतांबर मंदिर (मुहल्ला भावड़याँ में) १-उपाश्रय (मुहल्ला भावड़यां में) (२५)-बन्नू १-श्वेतांबर जैन मंदिर (मुहल्ला भावड़यां में) १-श्वेतांबर जैनउपाश्रय (मुहल्ला भावड़यां में) २-खरतरगच्छीय श्वेतांबर जैनदादा वाड़ियाँ X(१) लाहौर, X(२) हाजीखां डेरा, X(३) मुलतान, X(४) देरावरपुर, X(५) पहाड़पुर, X(६) डेरागाजीखाँ,(७)नारनौल (पहाड़ी की टेकरी पर) (८) सामाना। (६ से १०) दिल्ली में दो दादा वाडिया (नोट) नं० १ से ६ दादावाड़ियाँ जिनके पहले x निशान दिया गया है, पाकिस्तान में हैं, इस समय पाकिस्तान में सब मंदिर तथा संस्थानों की क्या अवस्था है कुछ पता नहीं हैं । नं०७ और ८ सुरक्षित हैं और पंजाब (भारत) में हैं। इन दोनों नगरों के स्थानीय संघ यद्यपि तपागच्छीय और ढूंढिये हैं तथापि वे सब दादा जी की भक्ति श्रद्धापूर्वक करते हैं। पंजाब और सिंध में जहाँ जहां लौंकागच्छीय यतियों के मंदिर या उपाश्रय हैं उन में भी उन यतियों ने श्री जिन कुशल सूरि की चरणपादुकायें स्थापित की है। दिल्ली की दोनों दादावाड़ियाँ बहुत अच्छी अवस्था में है। 1. नं० १ गुजरांवाला नगर से लेकर नं० २५ बन्न तक का सब क्षेत्र ई०सं० १९४७ में पाकिस्तान बन पका है। इसलिए सब जैन परिवार इस क्षेत्र को छोड़कर भारत में बस गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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