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मध्य एशिया और पंजाब में जनधर्म ८. रूपनगर (रोपड़) में यति गद्दी यहां पर वृहत्तपागच्छीय यतियों की गद्दी थी। विक्रम संवत् १७४३ में यहां यति प्रेमविजय जी विद्यमान थे।
९. मुलतान में यतियों की गहियाँ (१) मुलतान में खरतरगच्छ के यतियों की गद्दी थी । इस गद्दी का अन्तिम यति सर्यमल हुआ है जिस का देहांत कलकत्ता में विक्रम संवत् २००० के लगभग हमा।
(२) यहाँ पर वृहत्तपागच्छ के यतियों की भी गद्दी थी। वि० सं० १७४३ में यति श्री पं० मुक्तिसुन्दर इस गद्दी पर विद्यमान थे।
१०. भटनेर (हनुमानगढ़) में यतियों को गहियाँ यहाँ पर अनेक गच्छों के यतियों के उपाश्रय, गद्दियाँ और शास्त्रभंडार थे।
(१) वृहत्तपागच्छ --- वि० सं० १७२३ में श्री विजयप्रभ सूरि ने यति मुक्तिसुन्दर को मुलतान, सिरसा, भटनेर की वृहत्तपागच्छ की गद्दियां सुपुर्द की थी।
(२) बड़गच्छ के यतियों की यहाँ श्रीपूज्यों की गद्दी थी और उपाश्रय भी था। इस गद्दी के श्रीपूज्य भावदेव सूरि ने वि० की १६वीं शताब्दी में अनेक चमत्कार दिखलाकर यहां के अधिकारी खेतसी के अत्याचारों को मिटा कर श्रीसंघ की रक्षा की थी। तत्पश्चात् इन के पट्टधर शिष्य श्री शीलदेव सूरि भी बड़े चमत्कारी हुए हैं और शासन प्रभावना के बड़े कार्य किये हैं ।
इन्हों ने अनेक ग्रंथों की रचनाएं भी की हैं। सामाना, सिरसा में भी इन की गद्दियां थीं। शीलदेव के गुरुभाई यति कवि माल ने पंजौर व सिरसा में राजस्थानी तथा हिन्दी भाषा में अनेक उत्तम ग्रंथों की रचना की है । भावदेव सूरि के २२ शिष्य थे अतः इनकी अन्य नगरों में भी गद्दियाँ होंगी।
१. भद्रेश्वर सूरि, २, महेन्द्रसूरि, ३. शिष्य मेरुप्रभ सूरि, ४. शिष्य भावदेव सूरि, ५. शिष्य शीलदेव सूरि व गुरुभाई मुनि मालदेव प्रादि इन को गुरवावली है।
(३) खरतरगच्छ के यतियों की भी यहाँ गद्दी थी। फ़रीदकोट, मुलतान, सिरसा, हिसार, हांसी आदि की खरतरगच्छ के यतियों की गद्दियाँ इसी गद्दी के प्राधीन थीं। मुलतान में इस गही के यति धर्ममंदिर गणि ने यहाँ एक नथ की रचना भी की थी और उस के शिष्य रूपचन्द्र ने तभी इसे लिपिबद्ध किया था। उस की पुष्पिका इस प्रकार है
पुष्पिका-खरतरगच्छे राजीया भट्टारक श्री जिनचन्द्रो रे । भुवनमेरु तत् सिष भला, पुण्यरत्न वाचक प्रानन्दो रे। तास सीस पाठकवरु श्री दयाकुशल जस लहीजे रे ॥२३।। सत्तरइ सइ इगचालीस बरसे रच्यो धर्मध्यान अंग इत्यादि ।
संवत् १७४१ वैसाख सुदि ५ श्री मुलतान नगरे श्री दयाकुशलोपाध्याय पं० धर्ममंदिर गणिवर शिष्य रूपसुन्देरण लिख्यते भणशाली मोठ्ठ लाल तत्पुत्र रत्न भ० सूरिजमल्ल पठनार्थ लिपि कृतं ।
1. देखें इसी नथ में चमत्कारी भावदेव सूरि परिचय । 2. देखें इसी नथ में सामाना नगर का परिचय ।
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