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________________ २४८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म पचास रुपये भेंट में दिये । उनके साथ में आये हुए सवारी, सामान, बैल, टट्टू, घोड़ े, रथ, बहली आदि का चारा, भाड़ा, तथा सारा खर्चा भोजन आदि भी तेवड़ करानेवाले दुग्गड़ परिवार ने ही दिया । लाहौरी उत्तरार्ध लौकागच्छीय यति ५. श्रीपूज्य विमलचन्द्र तथा श्रीपूज्य रामचन्द्र की पट्टावली ( लोकागच्छ का प्रारंभ वि० सं० १५३१) १ भूना ऋषि - सं० १५३१ २. भीदा ऋषि ३ नूनाऋषि ४. भीमाऋषि ५. जगमाल ऋषि ६. सरवा ( सरवर ) ऋषि ७. रायमल्ल ऋषि ' ८. सदारंग ऋषि ६. सिंहराज ऋषि (श्री पूज्य ) १०. जठमल ऋषि ११. मनोहर ऋषि १२. सुन्दरदास ऋषि १३. सदानन्द ऋषि १४. जसवन्त ऋषि हैं । श्री वल्लभ स्मारक जैन प्राच्य शास्त्रभंडार दिल्ली में वाले कई शास्त्र सुरक्षित हैं । ये प्रतियां सामाना में वि० सं० प्रतिलिपि की हुई हैं। शास्त्रों की पुष्पिकायों में वे अपना १५. वर्द्धमान ऋषि १६. महासिंघ ऋषि (श्री पूज्य ) 2 १७. जयगोपाल ऋषि (श्री पूज्य ) ६. सामाना में यतियों के उपाश्रय श्रादि वृहत्तपागच्छीय यति ( पूज) श्री रूपदेव जी विक्रम की १६वीं शताब्दी में विद्यमान थे । आप का अपना उपाश्रय और जैनमंदिर भी था । श्राप ने अनेक ग्रंथों की पांडुलिपियाँ भी की १५. विमलचन्द्र ऋषि (श्री पूज्य ) Jain Education International १६. रामचन्द्र ऋषि ( श्री पूज्य ) इनके द्वारा किये गए प्रतिलिपि १८५७ से लेकर वि० सं० १६०६ परिचय इस प्रकार देते हैं (१) वृहत्तपागच्छे श्री पूज्यमयाचन्द्रजी, शिष्य पूज्य धर्मदेवजी, शिष्य पूज्य रूपदेव लिपिकृतं सामाना मध्ये कर्म सिंह पुत्र नरसिंह राज्ये । इनसे पहले इसी गच्छ के वि०सं १७४३ में यति तेजसागर जी इस गद्दी पर विद्यमान थे । 1. रायमल्ल ऋषि तथा भल्लो ऋषि, ये दोनों गुरुभाई यति सरवर के शिष्य थे । गुजरात से पंजाब में आनेवाले ये लौंकागच्छ के सर्वप्रथम यति थे । For Private & Personal Use Only 2. इन को पट्टी में श्री पूज्य पदवी दी गई । 3. इनको होशियारपुर में श्रीपुज्य पदवी दी गई । 4. इनको वि० सं० १८७१ में पट्टी में श्रीपूज्य पदवी दी गई । 5. इन को वि० सं० १८८० अमृतसर में श्री पूज्य पदवी दी गई । 6. यति श्री रूपदेवजी सत्यवीर- सद्धर्मसंरक्षक मुनि श्री बुद्धिविजय (बूटेराय) जी के समकालीन थे । www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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