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यति ( पूज्य) और श्री पूज्यं
इस समय के जैन श्वेतांबर मंदिरों की गिनती
१. पिंडदानखाँ, २. रामनगर, ३. पपनाखा, ४. किलादीदारसिंह, ५. कुंजरांवाला, ( गुजरांवाला ), ६. लाहौर, ७. अमृतसर, ८ जंडियालागुरु, ६. पट्टी, १०. होशियारपुर, ११. लुधियाना, १२. फरीदकोट, (मूलनायक बाइसवें तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमि ), १३. कोटला ( मालेरकोटला ) १४. अंबाला शहर, १५. अंबाला छावनी, १६. जगाधरी, १७. सहारनपुर में दीनदयाल हरसुखराय का मंदिर १६. साढ़ौरा, २० करनाल, २१. पानीपत, २२. दिल्ली नौघरा ( किनारी बाजार ) २३. चेतपुरी, २४. सोनीपत, २५. दिल्ली, २६. दिल्ली पंचायती ।
अमृतसर में होने वाली तेवड़ में
श्रीपूज्य पदवी देने की विधि ।
१. पहली एक चादर यतियों की तरफ से, २. बाद में एक चादर पंचायती, ३ पश्चात् श्रावकों की तरफ एक चादर ४. एवं अन्त में एक चादर तेवड़वालों की तरफ से [ श्रीपूज्य जी को ] श्रोढ़ाई गयी । फिर श्रीपूज्य जी को श्रीसंघ और बाजे-गाजे के साथ पगमंडल (रेजे के दो कपड़ों) पर चलाते हुए और रास्ते में न्योछावर (रुपये पैसों आदि की सोट) करते हुए तेवड़ वाले अपने घर ले गये । श्रीपूज्य जो पोषाल से तेवड़वाले के घर तक जाते हुए रास्ते में पड़ने वाले प्रत्येक श्रावक के घर के आगे जब पहुचते थे तब उस घर के परिवार वालों ने श्रीपूज्य जी के सामने श्राकर चावलों की गोहली की और उस पर नारियल और मुद्रा (चाँदी का सिक्का) चढ़ा कर उन की पूजा की । तेवड़वाले के घर पहुंच जाने पर श्रीपूज्य जी को लकड़ी के पाट पर विराजमान करके तेवड़वालों ने उन्हें एक सूती चादर प्रौढ़ाई ( यह वही चादर है जिसे हम ऊपर कह आये हैं)। फिर एक दोशाला प्रोढ़ाया । पश्चात् श्रीपूज्य जी को पांच थान कपड़े के भेंट किये। एक कछपट्टी (चोलपट्टा), एक धोती रेशमी एक साटन का रुमाल, एक शास्त्र बांधने का साटन का रुमाल, पात्र रखने की झोली, मुंहपत्ति, प्रासन, निसीथ, बिछोना, सिरहाना, साटन का चंदुना - पीठिया, बन्दरवाल, सुनहली रुपहली कलाबत्तू के कामवाले; दही की चाट (मटका), गुड़ की रोड़ी (भेली), सूत की श्रट्टी, २१ सेर पंचधानी लड्डू; यह सब सामग्री श्री पूज्यजी को भेंट की ।
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श्री पूज्य जी के साथ में आनेवाले प्रत्येक यति को दो-दो कपड़े के थान दिये । श्रीपूज्य जी के साथ आने वाले आदमियों को भी यथाशक्ति भेंट दी ।
फिर श्रीपूज्य जी तथा सब यतियों को बाजे गाजे और श्रीसंघ के साथ तेवड़ वाले उनके स्थान ( पोषाल ) पर वापिस छोड़ने गये । वहाँ जाकर तेवड़वालों प्रभावना की और श्री पूज्य जी आदि को अपने घर पर ही ( सब यतियों को) पांच दिन तक भोजन कराया | उन्हें गोचरी नहीं लाने दी ।
[ उस सस्ते समय में ] तेवड़वालों ने श्रीपूज्य जी को एक सौ रुपये भेंट किये । यतियों को
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1. श्री पूज्य विमलचंद्र के देहांत के बाद यति रामचन्द्रजी को श्रीपूज्य की पदवी दी गई। इससे ज्ञात होता है कि श्रीपूज्य विमलचन्द्र का देहावसान वि० सं० १८७६ में हो गया होगा । ( इस तेवड़ का विज्ञप्ति पत्र भी श्रीवल्लभस्मारक प्राच्य जैनशास्त्र भंडार दिल्ली में सुरक्षित है | )
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