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________________ पति ( पूज) और श्री पूज्य ३४५ उत्तमचन्द गोत्र दुग्गड़ । सर्व जती - प्रारजा । [श्रपने अनुयायी यतियों - यतनिमों को क्षेत्र सौंपने का विवरण] १. प्रथम क्षेत्र - श्रीमद् पूज्य रामचन्द्र स्वामी जी : (१) अमृतसर, (२) पट्टी, (३) साढौरा, (४) अंबहटा, (५) लाहौर, (६) अंबाला । ६ क्षेत्र २. पूज्य रूपाऋषि - ( १ ) पट्टी, (२) खरड़, (३) नालागढ़ | ३ 32 ३ 19 ३. पूज्य लालूऋषि = (१) जगरावां, (२) रायकोट, (३) बलाचौर । ४. पूज्य दीपचन्द्र ऋषि = (१) अमृतसर, (२) जंडियाला गुरु (३) कसूर ५. पूज्य माणक ऋषि = (१) फगवाड़ा, (२) टाँडा, (३) नकोदर । ६. पूज्य राजाराम ऋषि = (१) रामपुर । ७. पूज्य दूनीचन्द ऋषि = (१) गुजरांवाला | ८. पूज्य सहजू ऋषि - ( १ ) अंबाला, (२) मनसूरपुर । ६. पूज्य प्रमाऋषि = ( १ ) अंबहटा । १०. पूज्य जीवा ऋषि = (१) थानेसर, (२) करनाल । ११. पूज्य साहब ऋषि = (१) अबदुल्लाखां की गढ़ी, (२) सहारनपुर । १२. पूज्य जीता ऋषि = (१) मालेरकोटला, (२) लुधियाना । १३. पूज्य जौहरी ऋषि = (१) पटियाला । १४. पूज्य नौबत ऋषि = (१) जेजों । १५. पूज्य बनूड़ी ऋषि = (१) बनूड़ । १६. पूज्य दीवान ऋषि = (१) सरसावा, (२) सिरसा । १७. पूज्य धर्मा ऋषि = (१) अमृतसर | १८. पूज्य नानक ऋषि = (१) सुनाम | १६. पूज्य बढ़ता ऋषि - ( १ ) राहों । २०. आरजा लक्ष्मी जी = (१) होशियारपुर | २१. श्रारजा सुखमनीजी - (१) थानेसर, (२) सामना | २२. श्री श्रीपूज्य रामचन्द्र जी के साथ = पूज्य सोहनऋषि, पूज्य बिहारी ऋषि । Jain Education International ३ For Private & Personal Use Only ३ १ १ २ २ 91 २ " " 11 १ " 31 11 " २ " १ १ " " " २ " १,” १ 31 १,, १ २ " २ 29 इन क्षेत्रों में परठ करी । श्री १०८ श्रीमत्यपूज्याचार्य स्वामी रामचन्द्र ने तेवड़ की । रतनचन्द्र उत्तमचन्द्र दुग्गड़ सर्वसंघ को प्रमाण करनी सही । [ सब यति] अपने-अपने क्षेत्रों को संभालें । अपना क्षेत्र छोड़कर जो दूसरे क्षेत्र में जावेगा सो चतुर्विधसंघ का विराधक होवेगा । जो प्रपने क्षेत्र में रहेगा वह चतुर्विधसंघ का आराधक होगा । सही-सही पदवी नई चादर पहरने । [श्रीपूज्य पदवी प्रदान करते समय श्रीपूज्य जी को दी गई चादरों का विवरण ] ( १ ) पहली चादर यतियों की, (२) पंचायत की तरफ़ से, (३) श्रावकों की तरफ से, (४) तेवड़वाले श्रावकों की तरफ से । उस के [तेवड़ वाले के] घर चिट्ठा-वाचना सर्वसंध ने प्रमाण की । वि० सं० १५५० में श्री जी गद्दी पर बैठे । शुभम् अस्तु । जती १६ श्रार्या ४ । स्वगच्छीय ६, खरतरगच्छीय ५, गुजराती Mantrच्छी २, नागौरीगच्छीय ३ । [तेवड़ पर प्राये ] | " www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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