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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म इन क्षेत्रों की परठ करी, श्री मत्पूज्याचार्य विमलचंद्र स्वामी की तेवड़ पंचायती करी। सकल संध को प्रमाण करनी सही । प्रपना-अपना क्षेत्र साचवना। [जो अपनी छोड़ी विरानी (दूसरे के क्षेत्र में) जावेगा सो शिक्षा (दंड) पावेगा। अपने क्षेत्र में रहेगा सो चतुर्विधसंघ का पाराधक होवेगा सही।
(३) श्रीपूज्य विमलचन्द्र स्वामी के नाम
फगवाड़ा (पंजाब) के मेघराज ऋषि का पयूषण क्षमापणा पत्र कहे कवि मेघऋषि उपमा अपार घनी तुमहु हो सागर से घने रत्न भरे हैं ॥६॥ तत्र शुभ ठौर भली, सुधासर (अमृतसर) नाम कह्यो भव्यजीव दान करै पाले षटकायी को। श्री श्रीपूज्य मदाचार्य गुरु विमलचन्द्र स्वामीजी सुपूज्य बड़ो गुरुद्याल लायी को ।। पूज्य श्री झंडा ऋषि धरमहू को झंडा जिम वीर ऋषि बीरबली मीत सुखदायी को । पूज्य विनी क्षेमामुनि क्षेमहू को करता है सेव करै गुरु की मेघा गुण गायी को ॥७॥ फगमा सुनयर वस दास-नी को दास सदा मेघाऋषि नाम भणे चेरौ तुम पाद को । ताको सुभ सीस ईश माणक है चन्द्र नाम साधनि की सेव कर नहीं मान वाद को ॥ सो तो है नकोदर में वन्दना सु-वाचो प्रभु दा हे दश पाठ (१०८) वार करके प्रसाद को। चरणों के साथ हमें जानौ दिन-रन भले किरपा को राषी तुमै धरी न प्रमाद कौ ॥८॥ पत्र सखसाता तत्र तुम को कल्याण करै चौबीस जिनराज सदा और देवी-सासना। इहां के श्रावक सब वन्दना करत प्रभु सुधासर (अमृतसर) श्रावक नै धर्मध्यान भासना ।। परव पजूसन सुबीते हैं प्रानन्द करी हुआ तप घना व्रत-बेला और एकासना। तुम ह के दर्श को चाहत है मेरो मन काया में कलेस बड़ो चलने की प्रास ना ॥६।। तुमरी प्रभु ! कृपा सौं मेरो मिटि जाई रोग देखो तव-पाद दोऊ पूजे मन कामना। चले महि रही पीर रोग है बिपीर बड़ौ किये हैं उपाई धन प्रायुर्वेद गामना ।। गाम ह में फिरने की शक्ति भई मेरे तन पांच सात कोसनि के जात है की सामिना । सेवक निज जानि के हमै न भुलावी नाथ, सेवक हैं आदि हूं के धरै सेव भावना ॥१०॥ पाती निज शांति हू की लिखियो हमेश नाथ तुमरी प्रानन्द हू ते हम को मानन्द ह। जो तो हम सेव भक्ति करी नहीं महाराज कारण ही बन्यो ऐसो पायो दुःख द्वंद ह ॥ भये हैं कपूत जबे पिता तो सुपिता होहिं पिता की भलाई कहैं मन्द ह्व? तिस ते अनेक दोष हम हू में रहैं पोष तुमी न विचारो प्रभू ! किरपा के चन्द ह ॥११॥ दोहा-दीरघ लघु जो साध सब, लाइक हैं तुम स्वामी ।
नालाइक हम हैं प्रभु ! यो तुमारी स्वामि ॥१२॥ सरब साध मंडल कू, सब गुण सुगन्ध भरपूर । आक फूल मुनि मेघ है, तुम शिव पग धूर ॥१३॥
(मिति भादों सुदि ५) (४) यति रामचन्द्र को-श्रीपूज्य पदवी प्रदान श्रीमत्पूज्य रामचन्द्र जी (स्वामी) की तेवड़ (श्रीपूज्य पदवीप्रदान महोत्सव) करवाई अमृतसर नगरे [वि.] सं० १८८० मिति माघ सुदि ५ बृहस्पतिवासरे। लाला रतनचन्द, लाला
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