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४. पडिक्कमण ( प्रतिक्रमण ) ५. काउस्सग्ग (कायोत्सर्ग)
६. पच्चवखाण ( प्रत्याख्यान )
७. दसवेयालिय ( दशवेकालिक)
८. उत्तरज्झयण (उत्तराध्ययन) ६. कप्प ( कल्पसूत्र )
१०. ववहार (व्यवहार)
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
४. पक्किमणं (प्रतिक्रमण )
५. वेणइय (वैनयिक )
६. किदियम्म (कृतिकर्म )
७.
दसवेयालिय ( दशवैकालिक) ८. उत्तरज्झयण (उत्तराध्ययन) ६. कप्पाकप्पीय ( कल्पा कल्प)
१०. कप्पववहारो ( कल्पव्यवहार )
११. महाकप्पिय ( महाकल्प )
१२. पुंडरीय (पुंडरीक) १३. महापुडरीय (महा! डरीक) १४. णिसिहिय ( निषिद्धिका )
११. महाकष्प ( महाकल्प )
१२ इसीभासीय ( ऋषिभाषित)
१३. णिसिह (निशीथ )
१४. महाणिसिह ( महानिशीथ )
इत्यादि अनेक प्रकार के अंग वाह्य हैं ।
ऊपर की तालिका से यह स्पष्ट है कि इन्हीं अरंग प्रविष्ट और अंग बाह्य को दिगम्बर भी मानते हैं जो श्वेतांबर जैनों के पास आज भी विद्यमान हैं तथापि दिगम्बरों के उन्हें कल्पित कहने का यही प्रयोजन है कि इन में साधु साध्वी के लिये वस्त्र पात्र प्रादि उपकरणों को रखने के विधिविधान हैं जिससे दिगम्बरों की एकांत नग्नता की मान्यता आगमविरुद्ध सिद्ध हो जाती है और साधू के समान ही साध्वी भी पांच महाव्रत धारिणी है तथा मोक्षप्राप्त कर सकती है ऐसी महावीरशासन मान्यता की सिद्ध हो जाती है जो दिगम्बरों को मान्य नहीं है ।
का तथा ढूंढिया ( स्थानकवासी) मत
जैनधर्म में सदा से जिनमंदिरों तथा जिनप्रतिमाओं की स्थापना, पूजा और उपासना चालू है । बड़े-बड़े प्राचीन प्रालीशान जैनमंदिर, जैनतीर्थ तथा जैनतीर्थ करों की मूर्तियाँ आज भी सर्वत्र विद्यमान हैं जो जैनधर्म के गौरव और प्राचीनता के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । भारत में मूर्तिविरोधी विदेशी मुसलमानों के आक्रमणों, श्रौर उनका शासन स्थापित हो जाने पर विक्रम की १६वीं शताब्दी में जैनधर्म में से भी एक मूर्तिविरोधी संप्रदाय का प्रादुर्भाव हुआ जो आज स्थानकवासी संप्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है । इस मत का संस्थापक एक गुजराती गृहस्थ लौंकाशाह था । सर्वप्रथम यह संप्रदाय लूं कामत के नाम से प्रसिद्धि पाया । पश्चात् विक्रम की १८वीं शताब्दी में " दिया मत के नाम से प्रख्याति पाया, फिर श्रमणोपासक और आजकल स्थानकवासी मत के नाम से भारत में सर्वत्र विद्यमान है ।
का तथा ढूंढियामत की उत्पत्ति समय तथा मान्यताओं पर भी प्रकाश डालना इसलिये आवश्यक है कि पंजाब के ( इतिहास को विक्रम की १७ वीं शताब्दी से २१ वीं शताब्दी तक के ) समझने में सही मदद मिलेगी ।
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१ लुकामत की उत्पत्ति -
वि० सं० १५०८ को लुंकाशाह गृहस्थ ने जिनप्रतिमा का उत्थापन (जिनमूर्ति की मान्यता का विरोध ) अहमदाबाद (गुजरात) में प्रारम्भ किया और लुकामत की स्थापना की ।
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