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________________ २६४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म की कोठियों के प्रासपास तथा सभी भक्ति करने की जगहों पर जो जैन श्वेतांबर धर्म की हैं उनके चारों ओर कोई भी व्यक्ति किसी भी जीव को न मारे । उपर्युक्त सब पहाड़ और भी जो जैन श्वेतांबर धर्म के धर्मस्थान हमारे ताबे (प्राधीन) हैं वे सभी जैन श्वेतांबर धर्म के आचार्य श्री हीरविजय सूरि के स्वाधीन किये जाते हैं। जिससे इन धर्मस्थानों पर शांतिपूर्वक अपनी ईश्वरभक्ति किया करें । ऐसा फरमान जारी किया। ___-अकबर युद्धों में राजबन्दी बनाता था उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बना लिया करता था, उन्हें बंदीखाने से मुक्त कराया । मुसलमान न बनाने की प्रतिज्ञा दिलायी और हिंदू-मुसलमान सब समान हैं अपने-अपने धर्म की आराधना-भक्ति करने में उन्हें कोई बाधा न पहुँचाये । ऐसे फ़रमान जारी किये। १०–सूरि सवाई प्राचार्य विजयसेन सूरि के उपदेश से सम्राट ने (१) गाय-बैल, (२) भैस-भैंसा, (३) ऊंट, (४) बकरा-बकरी की हिंसा, (५) निःसंतान मृत्युवालों का धन राज्यकोष (सरकारी खजाने) में ले जाना, (६) बन्दीवानों को पकड़ना इन छ: कार्यों को बन्द कराया। ११- शत्रं जयादि तीर्थों पर जो यात्रियों से जजि या (कर) लिया जाता था वह बंद कराया। अकबर द्वारा जैन मुनियों को पदवियाँ प्रदान १-श्री हीरविजय सूरि को जगद्गुरु की पदवी दी। २-श्री विजयसेन सूरि को सूरिसवाई की पदवी दी। ३-श्री शांतिचंद्र गणि को उपाध्याय पदवी दी। ४-श्री भानुचंद्र को उपाध्याय पदवी से अलंकृत किया । ५-श्री जहाँगीर ने सिद्धिचंद्र को खुशफहम और जहाँगीरपसंद की पदवी दी। ६.श्री नंदीविजय जी को खुशफहम की पदवी प्रदान की। ७-श्री विजयदेव सूरि को जहाँगीर ने महातपा की पदवी दी। ८-श्री जिनचंद्र सूरि को युगप्रधान की पदवी दी। 1. यह असल फरमान् अहमदाबाद की प्रानन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी में मौजूद है। इसका अंग्रेजी अनुवाद राजकोट के राजकुमार कालेज के मुनशी मुहम्मद अब्दुल्ला ने किया था। इस फरमान से स्पष्ट है कि ये सब जैन श्वेतांबर तीर्थ हैं। इसीलिये अकबर ने इन्हें हीरविजय सूरि के सुपुर्द किये थे। कई लोग अथवा संप्रदाय उपयुक्त तीर्थों को श्वेतांबरों के स्वतंत्र तीर्थ होने पर झगड़े तथा मुकदमें करके इनको हड़पने के लिये सदा तत्पर रहते हैं। पर ये सब श्वेतांबर जैनतीर्थ हैं इसकी पुष्टि केलिये अकबर के दरबार में रहने वाले श्वेतांबर मर्तिपूजक मंत्री कर्मचन्द वच्छावत को भी इन्हीं सब तीर्थों को देने का उल्लेख हैं देखेंसम्राट के समकालीन पं० जयसोम कृत कर्मचन्द चरित्न तथा लाभोदय राम। यद्यपि सम्राट ने अपने राज्य के 8वें वर्ष में जजिया कर हटा दिया था। उस समय गुजरात इसके अधिकार में नहीं था। प्रतः गुजरात प्रदेश तथा तीर्थों का जज़िया हीरविजय सूरि के उपदेश से (गुजरात पर अधिकार के बाद) माफ किया था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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