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________________ २८२ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म व्यवहार किया वे सारे देशवासियों के लिए उदारमना थे ' केदारनाथ से कन्याकुमारी तक ऐसा एक भी छोटा- बड़ा तीर्थ-स्थान नहीं है, जहाँ इन लोगों की उदारता का परिचय न मिला हो। हिंदुओं के तीर्थ सोमनाथ को ये दोनों प्रतिवर्ष दस लाख और काशी, द्वारिका आदि स्थानों को प्रतिवर्ष एक-एक लाख रुपया सहायता स्वरूप भेजते थे। इन दोनों भाइयों के चतुरतापूर्ण कार्यों से प्रजा बड़ी सुखी थी। राज्य में बन्दोबस्त भी बहुत अच्छा था। सब धर्मों के लोग अपना-अपना धर्म अच्छी तरह पालन कर सकते थे । देश में दुष्काल का कहीं नाम भी नहीं था। जब राजा वीरधवल की मृत्यु हो गई तब दोनों भाइयों ने उसके पुत्र वीसलदेव को राजगद्दी पर बैठाया और स्वयं पहले ही की तरह राज्य कार्य करने लगे। कुछ दिनों के बाद वस्तुपाल को यह जान पड़ा कि अब मेरी मृत्यु समीप है । अतः उन्होंने सबके साथ मिलकर शत्रुजय के लिये एक संघ निकाला। राजा वीसलदेव और राजपुरोहित सोमेश्वर ने अपने नेत्रो से अश्रु गिराते हुए उन्हें विदा किया। रास्ते में वस्तुपाल को बीमारी ने घेर लिया और उसकी मृत्यु हो गई। उसके शव का अंतिम संस्कार शत्रुजय पर किया गया और वहाँ एक मंदिर का निर्माण हुआ । इसके पाँच वर्ष बाद तेजपाल का भी देहांत हो गया। दोनों की पत्नियाँ भी अपने-अपने पतियों की मृत्यु के थोड़ें दिनों बाद ही अपनी जीवनलीला समाप्त कर गई। २ मगल साम्राज्य और जैनधर्म १. चमत्कारी श्री भावदेव सूरि बड़गच्छीय श्वेतांबर जैनाचार्य श्रीपूज्य भावदेव सूरि पुण्यप्रभ सूरि के शिष्य तथा पट्टधर थे। पाप बीसा प्रोसवाल लोढ़ा गोत्रीय शाह डूमा तथा माता लक्ष्मी के पुत्र थे। यति दीक्षा लेने के बाद आप को वि० सं० १६०४ में श्रीपूज्य (यतियों-पूजों के प्राचार्य) की पदवी दी गई । शीलदेव प्रादि आप के १८ शिष्य थे। आप बड़े चमत्कारी प्रभावक थे और क्षेत्रपाल देव पाप का सेवक था। आपकी गद्दी भटनेर (हनुमानगढ़) में थी। लाहौर के सुलतान को आप भटनेर लाये । घटना इस प्रकार है बीकानेर के राजा रायसिंह ने अपने पुत्र दलपत को अनेक नगर-गांव दिये, उनमें भटनेर भी था। कुंवर ने कलधौत ज्ञातीय खेतसी को अपना प्रधान बनाकर भटनेर का अधिकारी बना दिया। राज्य के दस वर्ष व्यतीत होने पर उसने यहां के प्रायः सब जैनश्रावकों को बन्दी बनाकर जेल में बन्द कर दिया। खेतसी को बहुत भूख लगने का रोग था। खाते-खाते उसका पेट भरता ही नहीं था। उसे भस्म रोग हो गया था । उसने भावदेव सूरि को अपने रोग का निदान (इलाज) करने को कहा। श्रीपूज्य भावदेव सूरि ने कहा कि यदि तुम जैन लोगों को जेल से मुक्त कर दो तो तुम्हारा इलाज करेंगे। किन्तु वह श्रावकों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ। चिढ़कर उसने भावदेव सूरि को बांध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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