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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की एक घटना विशेष महत्वपूर्ण है । ईसा पूर्व ३०५ वर्ष में मध्य एशिया के महान शक्तिशाली युनानी सम्राट सेल्युकस निकेतर ने भारत पर भारी प्राक्रमण किया । चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना ने श्राक्रमणकारी की गति को रोका, भीषण युद्ध हुआ । परिणाम स्वरूप सेल्युकस की बुरी तरह से पराजय हुई और वह बन्दी बना लिया गया । उसको याचना करने पर मौर्यसम्राट ने उसके साथ संधि कर ली, जिसके अनुसार सारे पंजाब और सिंध पर ही नहीं पितु काबुल, कांधार, बिलोचिस्तान, कम्बोज, हिरात, किलत, लालबेला, पामीर, बदख्शां पर भी मौर्यसम्राट का अधिकार हो गया। इस प्रकार प्रायः सम्पूर्ण भारत महादेश पर अपमा एक छत्र प्राधिपत्य स्थापित कर लिया । २६० व्यक्तिगत रूप से सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य धार्मिक था और साधु-संतों का भक्त भी था । जबकि ब्राह्मण ग्रंथों में उसे वृषल, शूद्र अथवा दासीपुत्र कहा है। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार उसे सर्वत्र शुद्ध क्षत्रीय कुलोत्पन्न कहा है । चन्द्रगुप्त मौर्य ईसा पूर्व ३२२ से राज्यगद्दी पर बैठा और ईसा पूर्व २६८ में मृत्यु पाया । उसने २४ वर्ष राज्य किया । सिकन्दर महान के समय में पंजाब में जंनधर्म युनानी सिकन्दर महान के भारत पर आक्रमण करने के अनेक अच्छे या बुरे परिणाम हुए । इन युनानियों को गांधार, तक्षशिला श्रादि जनपदों के नगरों में तथा उनके निकटवर्ती प्रदेशों में ही नहीं वरन सम्पूर्ण पंजाब और सिन्ध में यत्र तत्र सर्वत्र अनेक निग्रंथ श्रमणों से परिचय हुआ था । निग्रंथ जैनसाधु को कहते हैं। जिन का उन्होंने ' जिम्नोसोफ़िस्ट, 2 जिम्नटाई, जेनोई, प्रादि नामों से उल्लेख किया है । जिम्नोसोफ़िस्ट का अर्थ है - एकान्त में ध्यानमग्न योगी रूप जीवन व्यतीत करनेवाले नग्न अथवा अर्धनग्न (अल्पवस्त्र धारी) साधु । इसमें सन्देह नहीं कि इन शब्दों से प्राशय तत्कालीन एवं प्रादेशिक जैन मुनियों का । जिन्हें जैन श्रागमों में जिनकल्पी तथा स्थविरकल्पी निग्रंथ (जैनमुनि) कहा है। सिंधुघाटी में कुछ ऐसे ही साघुनों का उन्होंने ओरेटाई के नाम से उल्लेख किया है । इस से अभिप्राय श्रार्य का है । जो प्राचीनकाल में श्वेताम्बर जैन मुनियों के लिये प्रयोग होता था । जैसे कि प्रार्थ जम्बू, श्रार्य प्रभाव, आर्य सुहस्ति श्रार्य महागिरि, प्रार्य सुस्थित आदि और 'वेरेटाई' से व्रात्य ( व्रतधारी विशिष्ट ज्ञानवान ) है | जो ब्राह्मण विरोधी श्रमणोपासकों (जैन श्रावक-श्राविकाओं, साधु-साध्वियों ) के लिये प्रयुक्त होता था । उपर्युक्त जैन साधुनों में से कुछ को 'हिलावाई' ( वनवासी) नाम दिया गया है और उन्हें सर्वथा निस्पृह, अपरिग्रही, पाणितलमोजी, शुद्ध शाकाहारी, ध्यानी, तपस्वी सूचित किया है । श्वेतांबर जैन साधुनों का एक वनवासी गच्छ भी था, वे प्रायः जंगल में रहते थे । इसी गच्छ के मंडन तथा कल्याण नाम के दो जैनसाधुनों से स्वयं सम्राट सिकन्दर ने भी साक्षात्कार किया था । सम्राट के आग्रह से कल्याण मुनि बाबुल भी गये थे । जहाँ उन्होंने समाधिमरण प्राप्त किया था । युनानी लेखकों ने अल्पवस्त्रधारी तथा यथाजात (नग्न) जौनमुनियों तथा तीर्थंकर आदिनाथ 1. परातत्त्वज्ञों का कहना है कि उन्हें हिन्द-युनानी राजानों के कोई ३० नाम उन की मुद्राओं (सिक्कों) से प्राप्त हुए हैं जिन्होंने लगभग तीन शताब्दिनों तक भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों पर राज्य किया है । 2. Nalanda Current Dictionary English to Hindi. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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