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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (१८) मथुरा का युवराज शंखकुमार दीक्षा लेकर हस्तिनापुर श्राया । उसने यहाँ सोमदेव से भिक्षा के लिए जाने का रास्ता पूछा । सोमदेव ने जानबूझकर गरम तवे के समान गरमी से तप्त भयंकर रास्ता बतलाया । राजर्षि की तपस्या के प्रभाव से गरम रास्ता भी ठंडा हो गया । यह जानकर सोमदेव को बहुत पश्चाताप हुआ और प्रायश्चित रूप से इसने श्रापसे जैन मुनि को दीक्षा ग्रहण की परन्तु उच्च जाति का अभिमान न गया, जिससे मृत्यु पाकर काशी में मृतगंगा के किनारे चांडाल जाति में जन्म लिया और वैराग्य पाकर दीक्षा ग्रहण कर घोर तप किया तथा मानव और देवताओं का पूज्य बना । (१९) महाबल - राजर्षि - - बल राजा के पुत्र महाबल ने अपने पिता के उत्तराधिकार में हस्तिनापुर का राज्य प्राप्त किया । परन्तु राज्याभिषेक होने के तुरंत बाद इसने धर्मघोष आचार्य से दीक्षा ग्रहण की और साधु हो गया । पंजाब प्रादि जनपदों में विचरण करके सर्वत्र जैनधर्म का प्रचार व प्रसार किया। आयु पूरी करके पाँचवें देवलोक में गया । (२०) मुनि बल - बल गृहपति हस्तिनापुर में बहुत धर्मात्मा हुआ है अन्त में वह साधु होकर स्व पर कल्याण साधते हुए संलेखनापूर्वक मर कर सौधर्म देवलोक में देवता हुआ । २१४ (२१) समूह मुनि -- समूह नामक गृहपति ने भी हस्तिनापुर में दीक्षा ग्रहण की और साधु जीवन व्यतीत कर जैनधर्म का प्रसार करते हुए मरकर स्वर्ग में गया । (२२) हस्तिनापुर में प्रभु महावीर - यहाँ प्रभु के कई समवसरण हुए। भगवान महावीर २७ वाँ चतुर्मास (वर्षावास) मिथिला में व्यतीत करके विहार करते हुए अपनी ५७ वर्ष की आयु ( वीतभयपत्तन में आगमन के १० वर्ष बाद) वि० पू० ४८५ ८४ में हस्तिनापुर पधारे। उस समय यहाँ पर शिव राजर्षि ने प्रतिबोध पाकर प्रभु से जैनश्रमण की दीक्षा ग्रहण की। जिसका विवरण इस प्रकार है जैनागम स्थानांग सूत्र में प्राठा राजाओंों के नाम प्राते हैं जिन्होंने प्रभु महावीर के पास श्रमण दीक्षाएँ लीं। उनमें एक नाम राजा शिव का भी आता है इस पर टीका करते हुए नवाँगी टीकाकार प्रभयदेव सूरि लिखते हैं कि - "शिव हस्तिनापुर में इस राजा की चर्चा हस्तिनागपुर राजो" । " भगवती सूत्र नामक नगर था । उस नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में यह उद्यान सब ऋतुओं में फलों-फूलों से समृद्ध था और नगर शिव नाम का राजा था। वह राजाओं में श्रेष्ठ था । उस शिव राजा की पटरानी का नाम धारिणी था । उक्त शिव राजा को धारिणी से एक पुत्र था, उसका नाम शिवभद्र था । एक दिन राजा के मन में रात्री के पिछले प्रहर विचार हुआ कि हमारे पास जो इतना सारा धन है, राज्य वैभव है, वह हमारे पूर्वजन्म के पुण्य का फल है । श्रतः पुनः पुण्य संचय - Jain Education International में प्राती है उस समय में हस्तिनापुर सहस्र - श्राम्र वन नाम का उद्यान था । नन्दनवन के समान रमणीक था । इस 1. समणेण भगवतो महावीरेण रायणोमुंडे भवेत्ता प्रागारातो प्राणगरितं पव्वावित्ता, तं जहा वीरंगय, वीरवसे, संजय, एणिज्जत्ते य रायरिसी । सेय, सिवे, उदायणे (वट्ट संखे कारिवद्वेण) । ( स्था० स्थान ८ सूत्र ६२१ उत्तराद्ध) 2. स्थानांग सूत्र स्टीक उत्तरार्द्ध पत्र ४३१ । 3. भगवती सूत्र स्टीक शतक ११ उदेशा & पत्र ६४४, ६५८ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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