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________________ संधु-सौवीर में जैनधर्म १८६ कक्क को दीक्षा दी इसके साथ १५ नर-नारियों ने भी दीक्षा ली। कक्क को आचार्य पदवी दी प्रौर नाम कक्क सूरि रखा। (१०) प्राचार्य कक्क सूरि तृतीय (वि० सं० १५७ से १७४) ने लोहाकोट (लाहौर) में चतुर्मास किया । यहाँ ११ दीक्षाएं हुई और सुपार्श्वनाथ के मन्दिर की भी प्रतिष्ठा की । तक्षशिला पधारे । यहाँ आपके गुरु यक्षदेव तृतीय का स्वर्गवास हुा । वीरपुर में श्रावक पेथा को दीक्षा दी, शिवपुर में क्षत्रीय दाहड़ को दीक्षा दी और लोहाकोट (लाहौर) में शिव को दीक्षा दी। (११) आचार्य सिद्ध सूरि तृतीय (वि० सं० १७७ से १६६) ने पोमा नगर में पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा की । मरुकोट (मरोट) में उपाध्याय मंगलकलश के उपदेश से शत्रुजय का संघ निकला। तक्षशिला और वीरपुर में दीक्षाएं दीं। (१२) प्राचार्य रत्नप्रभ सूरि चतुर्थ (वि० सं० १६६ से २१८) में सिंहपुर (जेहलम नदी के तटवर्ती जैन महातीर्थ), कुणालदेश (तक्षशिला) सावत्थी (स्यालकोट) लोहाकोट (लाहौर) नगरों में पधारे । तक्षशिला में चतुर्मास किया। यहां पांच सौ जैनमन्दिर थे और जैनों की धनी आबादी थी । गोसलपुर में गोसल को दीक्षा दी। लाहौर में मन्दिर की प्रतिष्ठा की। स्यालकोट में प्रोंकार श्रावक को दीक्षा दी। गोसलपुर से शत्रुजय का संघ निकाला । सिंध के वडियार, मलकापुर, रेणुकोट, सोलोर, पालोर, डबरेल, सिनपुर, गगरकोट, नारायणपुर, समसौल, देपालकोट, वीरपुर, झीझाटे, तलपाटक, कटिपुरा, कण जोश, सीतपुर, सींहपुर, थनोद, चंडोली, चुड़ा, छिछोली, कोरपुर आदि नगरों में विचरे । (१३) आचार्य कक्क सूरि (वि० सं० २३२ से २६०) कुणालदेश (तक्षशिला) में पधारे । दीक्षाएं हुईं। लोहाकोट (लाहौर) में मन्त्री नागसेन को दीक्षा दी । स्यालकोट में दीक्षाएं हुईं। वीरपुर में पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा की । उच्चनगर में रणदेव के बनाये हुए पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा की । वीरपुर से वीरम ने शत्रुजय का संघ निकाला । (१४) महावीर की पट्टपरम्परा में १६वें पट्ट पर प्राचार्य श्री मानदेवसूरि ने तक्षशिला उच्चनगर, देराउल आदि नगरों में बहुत क्षत्रियों को प्रतिबोध देकर प्रोसवाल जैन बनाया स्व० पंन्यास कल्याणविजयजी का मत है कि इससे मालूम होता है कि प्रोसवाल जाति पंजाब से पश्चिम दिशा (राजस्थान आदि) में गई होगी । नाडुलाई (राजस्थान) के चतुर्मास में तक्षशिला में महामारी रोग फूट जाने के कारण तक्षशिला के संघ की प्रार्थना पर आपने वि० सं० २८० में लघुशान्ति स्तव संस्कृत भाषा में बनाकर वहाँ भेजा, जिसके जाप से जलमंत्रित करके छिड़कने से वहाँ महामारी का उपद्रव शांत हुआ। (१५) प्राचार्य यक्षदेव सूरि पाँचवां (वि० सं० ३१० से ३३६) ने वीरपुर नगर के राजा और मन्त्री को दीक्षा दी, अन्य दीक्षाएं भी दीं, चतुर्मास किया तथा पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा की। (१६) प्राचार्य ककक सूरि पाँचवां (वि० सं० ३३६ से ३५७) ने वीरपुर में दीक्षाएं दीं। मालाशाह ने शत्रुजय का संघ निकाला। लाहौर से रणवीर ने सम्मेतशिखर का संघ निकाला तक्षशिला से करणाट गोत्रीय रावत ने शत्रुजय का संघ निकाला। मरोट में महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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