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________________ १७८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म recognised a farmalished cognisance of 14th Tirthankra Anantnath for detect. (Jain Journal July, 1971 P. 9)। अर्थात् –श्री पी. सी. दास गुप्ता डायरेक्टर पुरातत्त्व विभाग पश्चिमी बंगाल ने अपनेउपर्युक्त अंग्रेजी लेख में जो जैन जरनल मासिक पत्र १९७१ पृष्ठ ८ से १३ में छपा है; लिखा है कि जैनों के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ ने तक्षशिला की मसाफ़री की थी, श्री यू. पी शाह ने अपनी 'जैन आर्ट' नामक पुस्तक में इसकी पुष्टि की है । मार्शल ने भी अपनी पुस्तक 'ए गाईड टू टेक्सिला केम्ब्रिज १९६० पृष्ठ ८ में लिखा है कि तक्षशिला में प्राप्त होनेवाले स्तूपों में से कुछ स्तूप अवश्य जैनों के हैं। हुएनसांग ने भी लिखा है कि सिंहपुर (जेहलम) में एक स्तूप के समीप श्वेतांबर जैनी अपने धर्म की उपासना करते थे। तक्षशिला से प्राप्त स्मारकों में से दो सिरोंवाले बाज़ (Eagle) पक्षी के चिन्ह वाले मंदिर से ज्ञात होता है कि भारत के पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत में प्राचीनकाल से जैनधर्म विद्यमान था। इसकी पुष्टि के लिए मार्शल ने अपनी पुस्तक ए गाईड अाफ़ टेक्सिला कलकत्ता १६१८ पृ० ७२' में लिखा है कि बाज़ पक्षी जैनों के चौदहवें तीर्थंकर श्री अनन्तनाथ का लांछन (चिन्ह) था, इसलिए यह प्रमाणित होता है कि दो सिरों वाले बाज पक्षी वाला मंदिर जैनो का था। भारतवर्ष की दो बड़ी नदियां हैं, गंगा और सिन्धु । इन दोनों नदियों को जैन शास्त्रों में शाश्वत कहा है । सिन्धु नदी से प्रसिद्धि पाया हुअा प्रदेश सिन्धु (सिंध) देश कहलाता था। हिमालय पर्वत से निकलकर १८०० मील की लम्बाई वाली सिन्धु महानदी अपने उत्तर और दक्षिण तटों से इस प्रदेश को पूर्व-पश्चिम दो विभागों में विभाजित कर देती है । एक समय था जब सिंध की सीमा आज के सिन्ध से बहुत-बहुत विशाल थी। अफ़ग़ानिस्तान,बिलोचिस्तान,वर्तमान भारत (पाकिस्तान) की पश्चिमोत्तर सरहद, पंजाब (पाकिस्तान) और उत्तरीभाग, वर्तमान सिंध (पाकिस्तान का एक प्रांत), भावलपुर राजपुताना जेसलमेर का कुछ भाग प्राचीन सिंध में समा जाते थे। इसमें गांधार, काश्मीर, तक्षशिला और पेशावर का भी समावेश था । प्राचीन काल में इस सिन्ध जनपद का भारतवर्ष में बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। पंजाब का दक्षिणी भाग सौवीर कहलाता था जो कच्छ के रण और अरब समुद्र तक व्याप्त था और पश्चिम में हाला पर्वत इस प्रदेश को घेरे हुए था। भारत में तीन जनपद अति विशाल थे; मगध, गांधार, सिन्धु-सौवीर । सिंधु-सौवीर मगध से चार-पांच गुना बड़ा था। विदेशी आक्रमणकारियों के लिए भारत में आने के लिए एक मात्र उत्तर का मार्ग ही खुला था। विदेशी सेनाओं ने यहां से ही प्रवेश करके सर्व प्रथम इसी प्रदेश पर आक्रमण किये थे। यदि भारत के किसी भी जनपद को विदेशियों के आक्रमणों से क्षतिग्रस्त होना पड़ा हो-~-सामना करना पड़ा हो तो यही जनपद है । ग्रीक आक्रमणकारियों ने तो पूरे भारत को ही इस नदी के नामानुसार पुकारना प्रारंभ किया था। सिंधु के 'सि' के स्थान पर 'हि से हिन्दू' शब्द का प्रादुर्भाव हुआ और सारे भारत देश को 'हिन्दुस्तान' के नाम से पुकारा जाने लगा। तथा इस देश के वासी 'हिन्दू कहलाये। ईरानी, अरबी तथा युनानी बोल-चाल में स 'को ह' बोला जाता है। सप्तम व सप्ताह फ़ारसी व अरबी भाषाओं में 'हफ्तम व हफ़्ता' हो गये हैं। सिन्ध का इतिहास बहुत ही पुराना है। प्राचीन काल से २५०० वर्ष पहले से भी इसे जैनधर्म की दृष्टि से प्रार्यदेश माना जाता था। जैन शास्त्र बृहत्कल्प भाष्य के जनपद परीक्षा प्रकरण में बतलाया गया है कि आर्य जनपदों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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